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________________ तृतीय अध्ययन - अभग्नसेन का सत्कार-सम्मान ६५ " भावार्थ - तदनन्तर किसी अन्य समय महाबल राजा ने पुरिमताल नगर में एक प्रशस्त और अत्यंत विशाल सैंकड़ो स्तंभों से युक्त कुटाकार शाला बनवाई जो प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप थी। तत्पश्चात् महाबल नरेश ने किसी समय उसके निमित्त उच्छुल्क यावत् दश दिन के उत्सव की उद्घोषणा करवाई और कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रियो! तुम शालाटवी चोरपल्ली में जाओ वहाँ अभन्नसेन चोर सेनापति से दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके इस प्रकार निवेदन करो। 'हे देवानुप्रिय! पुरिमताल नगर में महाबल राजा ने उच्छुल्क यावत् दस दिन तक उत्सव विशेष की उद्घोषणा करवाई है तो क्या आप के लिए विपुल अशन आदि तथा पुष्प, वस्त्र, सुगंधित द्रव्य, माला और अलंकार आदि यहीं पर लाये जाय अथवा आप स्वयं ही वहाँ पधारेंगे?' ., तदनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष महाबल राजा की आज्ञा को दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके अर्थात् विनयपूर्वक सुन कर तदनुसार पुरिमताल नगर से निकलते हैं और छोटी-छोटी यात्राएं करते हुए सुखद विश्राम स्थानों एवं प्रातःकालीन भोजन आदि के सेवन के द्वारा जहाँ शालाटवी चोर पल्ली थी वहाँ पहुँचे और अभग्न सेनापति से दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर दसों नखों वाली अंजलि करके इस प्रकार निवेदन किया - हे देवानुप्रिय! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्क यावत् दस दिन का उत्सव उद्घोषित किया है तो क्या आप के लिए अशनादिक यावत् अलंकार यहाँ पर उपस्थित किये जाएं अथवा आप स्वयं वहाँ पर . चलने की कृपा करेंगे?' तब अभग्नसेन चोर सेनापति ने उन कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा - हे देवानुप्रिय! मैं स्वयं ही पुरिमताल. नगर में जाऊँगा। तत्पश्चात् अभग्नसेन ने उन कौटुम्बिक पुरुषों का उचित सत्कार कर उन्हें बिदा किया। अभग्नसेन का सत्कार-सम्मान ...तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई बहूहिं मित्त जाव परिवुडे पहाए जाव सव्वालंकारविभूसिए सालाडवीओ चोरपल्लीओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पुरिमताले णयरे जेणेव महाबले राया तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता करयलं० महाबलं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता महत्थं जाव पाहुडं उवणेइ। तए णं से महाबले राया अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स तं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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