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________________ ६ ५ . विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ........................................................... महत्थं जाव पडिच्छइ, अभग्गसेणं चोरसेणावई सक्कारेइ संमाणेइ पडिविसज्जेइ कूडागारसालं च से आवसहं दलयइ॥८॥ ___कठिन शब्दार्थ - आवसहं - ठहरने के लिए स्थान, दलयइ - दिया। . भावार्थ - तदन्तर मित्रों आदि से घिरा हुआ वह अभग्नसेन चोर सेनापति स्नान से निवृत. हो यावत् अशुभ स्वप्न का फल विनष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त के रूप में मस्तक पर तिलक और अन्य मांगलिक कार्य करके समस्त आभूषणों से अलंकृत हो शालाटवी चोरपल्ली से निकल कर जहाँ महाबल राजा था वहा पर आता है आकर दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर अजंलि करके महाबल नरेश को जय विजय आदि शब्दों से बधाता है बधा कर महाथै यावत् राजा के योग्य भेंट देता है। तदनन्तर महाबल नरेश अभग्नसेन चोर सेनापति द्वारा प्रदत्त भेंट को स्वीकार करता है तत्पश्चात् अभग्नसेन चोर सेनापति का सत्कार सम्मान करके उसे प्रतिविसर्जित कियाविदा किया और उसे कूटाकारशाला में ठहरने के लिए स्थान दिया। ___तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई महाबलेणं रण्णा विसज्जिए समाणे जेणेव कूडागारसाला तेणेव उवागच्छइ। तए णं से महाबले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह उवक्खडावेत्ता तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ६ सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स कूडागारसालाए उवणेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा करयल जाव उवणेति। तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई बहूहिं मित्तणाइ जाव सद्धिं संपरिकुडे पहाए जाव विभूसिए तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च ६ आसाएमाणे ४ पमत्ते विहरइ॥४॥ __कठिन शब्दार्थ - विसज्जिए समाणे - बिदा किया हुआ, उवक्खडावेह - तैयार करवाओ, पंमत्ते - प्रमत्त हो कर। - भावार्थ - तत्पश्चात् वह अभग्नसेन चोर सेनापति महाबल राजा से बिदा किया हुआ जहाँ पर कूटाकारशाला थी वहाँ पर आता है और आकर ठहर जाता है। तदनन्तर महाबले राजा ने कौटुबिक पुरुषों को बुलाया और बुला कर कहा - 'हे देवानुप्रियो! तुम जाओ और विपुल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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