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________________ ७० नन्दी सूत्र ******************************* ********************************************* ******* विवेचन - जिन अवधिज्ञानियों को जघन्य अवधिज्ञान हैं, वे अपने जघन्य अवधिज्ञान से आवलिका के असंख्यातवें भाग पहले तक 'रूपी द्रव्यों का क्या हुआ और पीछे तक क्या होगा', मात्र इतना ही प्रत्यक्ष जानते हैं, परन्तु जिन अवधिज्ञानियों को उत्कृष्ट अवधिज्ञान है, वे अपने उत्कृष्ट अवधिज्ञान से असंख्य उत्सर्पिणियाँ और असंख्य अवसर्पिणियाँ जो बीत चुकी हैं, उसमें समस्त पुद्गल द्रव्यों का उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य कैसे रहा और आगे जो असंख्य उत्सर्पिणियाँ और अवसर्पिणियाँ बीतेंगी, उसमें समस्त पुद्गल द्रव्यों का उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य कैसा रहेगाइसे प्रत्यक्ष जानते हैं। ___जो मध्यम अवधिज्ञानी हैं, उसमें जघन्य अवधिज्ञान से जितना काल जाना जाता है, उससे कोई एक समय अधिक जानते हैं, कोई दो समय अधिक जानते हैं, कोई तीन समय अधिक जानते हैं, यों एक-एक समय की निरन्तर वृद्धि से यावत् कोई मध्यम अवधिज्ञान वाले, उत्कृष्ट अवधिज्ञानी जितना काल जानते हैं, उससे एक समय कम तक काल जानते हैं। भावओ णं ओहिणाणी जहण्णेणं अणंते भावे जाणइ पासइ, उक्कोसेण वि अणंते भावे जाणइ पासइ। सव्वभावाणमणंतभागं जाणइ पासइ। ... __अर्थ - भाव से अवधिज्ञानी जघन्य से अनन्त भाव-अनन्त पर्यव, जानते देखते हैं. और उत्कृष्ट से भी अनन्त भाव जानते देखते हैं। पर सर्व भावों के अनन्तवें भाग जानते देखते हैं। विवेचन - जिन अवधिज्ञानियों को जघन्य अवधिज्ञान हैं, वे अपने जघन्य अवधिज्ञानी के द्वारा प्रत्येक द्रव्य की तो चार-चार पर्याय ही जानते हैं, पर अनन्त द्रव्यों को जानते हैं। अतएव प्रति द्रव्य चार पर्याय के परिमाण से अनन्त द्रव्यों की अपेक्षा अनन्त पर्याय जानते हैं। जिन अवधिज्ञानियों को उत्कृष्ट अवधिज्ञान हैं, वे अपने उत्कृष्ट अवधिज्ञान से भी प्रत्येक द्रव्य की असंख्य पर्यायें ही जानते हैं, पर समस्त अनन्त पुद्गल द्रव्यों को जानते हैं। अतएव प्रति द्रव्य असंख्य पर्याय के परिमाण से अनन्त द्रव्यों की अपेक्षा अनन्त पर्याय जानते हैं। पुद्गल द्रव्य की जितनी स्व पर्यायें हैं, उनकी अपेक्षा तो वे अनन्तवें भाग जितनी ही पर्यायें जानते हैं, क्योंकि वे प्रत्येक रूपी द्रव्य की समस्त वर्तमान अनन्त पर्यायें और त्रैकालिक अनन्त पर्यायें नहीं जानते, मात्र कुछ काल क्षेत्र की असंख्येय पर्यायें ही जानते हैं। विशेष - जो मध्यम अवधिज्ञानी हैं, उनमें जघन्य अवधिज्ञान से जितनी पर्यायें जानी जाती हैं, उससे कोई १. अनन्तवें भाग अधिक पर्यायें जानते हैं, कोई २. असंख्यातवें भाग अधिक पर्यायें जानते हैं कोई ३. संख्यातवें भाग अधिक पर्यायें जानते हैं, कोई ४. संख्य गुण अधिक पर्यायें जानते हैं, कोई ५. असंख्य गुण अधिक पर्यायें जानते हैं और कोई ६. अनन्त गुण अधिक पर्यायें जानते हैं तथा उत्कृष्ट अवधिज्ञान से जितनी पर्यायें जानी जाती है, उससे कोई १. अनंतभाग हीन, कोई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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