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नन्दी सूत्र
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पूर्व तक विद्यमान रहता है। उससे उपरांत यावत् उत्कृष्ट अलोक में लोक प्रमाण असंख्य खण्ड ज्ञेय तक जानने वाले जितने अवधिज्ञान हैं, वे सभी नियम से अप्रतिपाति हैं। लोक या लोक के अन्दर तक के क्षेत्र को जानने वाले अवधिज्ञानों में कोई प्रतिपाति होता है और कोई अप्रतिपाति भी होता है।
विशेष - जैसे अवधिज्ञान 'प्रतिपाति' भी होता है और अप्रतिपाति भी होता है, वैसे ही प्रतिपाति+अप्रतिपाति-मिश्र भी होता है तथा न प्रतिपाति न अप्रतिपाति-अनुभय भी होता है।
ऐसे मिश्र अवधिज्ञान में पूर्व में जितना ज्ञान था, उसका एक भाग, सर्वथा एक क्षण में नष्ट हो जाता है और एक भाग केवलज्ञान की उत्पत्ति के एक क्षण पूर्व तक विद्यमान रहता है। यह अप्रतिपाति अवधिज्ञान है। ___ अब सूत्रकार, अवधिज्ञान जघन्य से और उत्कृष्ट से कितने द्रव्य, कितना क्षेत्र, कितना काल और कितने भाव-पर्यव जानता है, यह बताने वाला तीसरा विषय द्वार आरम्भ करते हैं।
अवधिज्ञान का विषय तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा- १. दव्वओ, २. खित्तओ, ३. कालओ ४. भावओ।
__ अर्थ - उस अवधिज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का है। वह इस प्रकार है - १. द्रव्य से २. क्षेत्र से ३. काल से और ४. भाव से।
तत्थ दव्वओ णं ओहिणाणी जहण्णेणं अणंताइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ।
अर्थ - वहाँ द्रव्य से अवधिज्ञानी जघन्य से भी अनन्त रूपी द्रव्यों को जानते-देखते हैं और उत्कृष्ट से सभी रूपी द्रव्यों को जानते-देखते हैं।
विवेचन - जिन अवधिज्ञानियों को जघन्य अवधिज्ञान हैं, वे अपने जघन्य अवधिज्ञान से अनन्त रूपी द्रव्यों को जानते हैं और अवधिदर्शन से देखते हैं। वे अनन्त द्रव्य, उत्कृष्ट अवधिज्ञान से जितने द्रव्य जाने देखे जाते हैं, उनकी अपेक्षा अनन्तवें भाग मात्र समझना चाहिए। ___जिन अवधिज्ञानियों को उत्कृष्ट अवधिज्ञान है, वे अपने उत्कृष्ट अवधिज्ञान से जितने भी रूपी द्रव्य हैं, उन सभी को जानते हैं और अवधिदर्शन से देखते हैं।
विषय - जो मध्यम अवधिज्ञानी हैं, उनमें जघन्य अवधिज्ञान से जितने द्रव्य जाने जाते हैं उससे कोई १. अनन्तवें भाग अधिक द्रव्य जानते हैं, कोई २. असंख्यातवें भाग अधिक द्रव्य जानते
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