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________________ नन्दी सूत्र पर्याय- अवस्था - आयु कही जाती है अर्थात् नायक आदि ने जितने वर्ष की वय में पाणिग्रहण किया, राज्य सिंहासन प्राप्त किया, दीक्षा ग्रहण की, जितने वर्ष दीक्षा पाली, प्रतिमा की आराधना की, जितनी सर्व आयु प्राप्त की आदि का तथा अन्य सम्बन्धित जनों की पर्याय का परिमाण बताया जाता है। २४८ ******************************** ******************************** श्रुतपरिग्रह - शास्त्राभ्यास बताया जाता है अर्थात् नायक ने साधुधर्म धारण कर सामायिक आदि ग्यारह अंग, चौदह पूर्व, बारह अंग आदि का जितना ज्ञान प्राप्त किया या श्रावक धर्म धारण कर नवतत्त्व, पच्चीस क्रिया आदि जितना सूत्रार्थ प्राप्त किया, उसका तथा अन्य सम्बन्धित लोगों के श्रुतपरिग्रह का परिमाण बताया जाता है। तप उपधान बताया जाता है अर्थात् नायक ने साधुधर्म धारण कर गुणरत्न संवत्सर, बारह भिक्षु - प्रतिमा आदि जिस तप का जिस विधि से जितनी बार जितने काल तक आराधन किया, श्रावक ने एकान्तर, ग्यारह उपासक - प्रतिमा आदि जिस तप का आराधन किया उसका तथा अन्य सम्बन्धित प्राणियों की तपाराधना का परिमाण आदि बताया जाता है । संलेखना-भक्त प्रत्याख्यान की भूमिका के रूप में देह व कषाय को कृश करना, भक्त. प्रत्याख्यान=अनशन, पादोपगमन = वृक्षमूल के समान (या पादपोपगमन - भूमि पर पड़ी वृक्ष की छिन्न शाखा के समान) देह को निश्चल बनाना, कहे जाते है अर्थात् नायक आदि ने अपने जीवन के अन्तिम समय में जिस विधि से संलेखना की, आलोचना की, भक्त प्रत्याख्यान किया, वह जितने दिन चला, इंगित या पादोपगमन जो संथारा धारण किया, वह बताया जाता है । देवलोक गमन, सुकुल प्रत्याजाति-अच्छे कुल में जन्म, पुनः बोधिलाभ- भवान्तर में धर्म प्राप्ति कहे जाते हैं अर्थात् नायक आदि यदि मोक्ष में नहीं गये, तो जिस देवलोक आदि में गये, वहाँ जितनी ऋद्धि व स्थिति पायी, वहाँ से निकल कर, जहाँ जिस क्षेत्र में, जिस जाति कुल में, जिस घराने में जन्म लिया, वहाँ जैसे धर्मकथा, सम्यक्त्व व दीक्षा प्राप्त की, इत्यादि बातें कही जाती हैं। अन्तक्रिया - भव, संसार या कर्मों को अन्त करने वाली शैलेशी आदि क्रिया कही जाती है अर्थात् नायक सीधे या भव करके जैसे कर्मों का क्षय कर मोक्ष में गये, वह बताया जाता है। दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाई, एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाई एवामेव सपुंव्वावरेणं अधुट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंतित्ति समक्खायं । A अर्थ- दूसरे श्रुतस्कन्ध में जो धर्मकथाएं हैं, उनके दस वर्ग हैं। उनमें एक-एक धर्म कथा में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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