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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - ज्ञाता धर्मकथा
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पाँच सौ-पाँच सौ आख्यायिकाएं हैं। एक-एक आख्यायिका में पाँच सौ-पाँच सौ उपाख्यायिकाएं हैं। एक-एक उपाख्यायिका में पाँच सौ-पाँच सौ आख्यायिका+उपाख्यायिका हैं - यों एक अरब पच्चीस करोड़ कथाएं हैं। परन्तु अपुनरक्त मात्र सब मिलाकर ३॥ कोटि कथाएं हैं, ऐसा कहा है। (वर्तमान में ६४ इन्द्रों की २०६ इद्राणियों की कथाएँ हैं।)
- णायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिजा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिजा सिलोगा, संखिजाओ णिजुत्तीओ, संखिजाओ संगहणीओ, संखिजाओ पडिवत्तीओ।
अर्थ - ज्ञाता धर्मकथा में परित्त वाचनाएं, संख्येय अनुयोग द्वार, संख्येय वेष्ट, संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियाँ, संख्येय संग्रहणियाँ और संख्येय प्रतिपत्तियाँ हैं।
से णं अंगट्टयाए छटे अंगे, दो सुयक्खंधा, एगूणवीसं अज्झयणा, एगूणवीसं उद्देसणकाला, एगूणवीसं समुद्देसण काला।
भावार्थ - ज्ञाता धर्मकथा, अंगों में छठा अंग हैं। इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, (पहले श्रुतस्कन्ध में) १९ अध्ययन हैं, १ उत्क्षिप्त मेघकुमार आदि। १९ उद्देशनकाल हैं। १९ समुद्दशनकाल हैं। . संखेजाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा,. परित्ता तसा, अणंता थावरा।
. भावार्थ - संख्यात सहस्र. पद हैं। संख्येय अक्षर (वर्तमान में ५४५० श्लोक परिणाम) हैं। अनन्त गम हैं, अनंत पर्यव हैं, परित्त त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं।
सासयकडणिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति पण्णविजंति परूविजंति, दंसिजंति, णिदंसिजति, उवदंसिजंति। . अर्थ - शाश्वत और कृत पदार्थों के विषय निबद्ध और निकाचित जिन प्रज्ञप्त भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञप्त किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, दर्शित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं।
से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ। से त्तं णायाधम्मकहाओ॥५०॥ . अर्थ - वह आत्मा इस प्रकार ज्ञाता और इसी प्रकार विज्ञाता होता है। ज्ञाताधर्म कथा में चरण करण की प्ररूपणा है। यह ज्ञाताधर्मकथा का स्वरूप है।
अब सूत्रकार सातवें अंग का परिचय देते हैं।
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