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नन्दी सूत्र
अर्थ ३६००० प्रश्नोत्तर हैं । २ लाख ८८ सहस्र पद हैं। संख्येय अक्षर हैं । ( वर्तमान में १५७५ श्लोक परिमाण अक्षर हैं) अनन्त गम हैं, अनन्त पर्यव हैं, परित्त त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं। सासयकडणिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति णिदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति ।
अर्थ - शाश्वत और कृत पदार्थों के विषय निबद्ध और निकाचित जिन प्रज्ञप्त भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञप्त, प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित और उपदर्शित किये जाते हैं।
से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से त्तं विवाहे ॥ ४९॥
भावार्थ - क्रिया की अपेक्षा व्याख्याप्रज्ञप्ति पढ़ने वाला व्याख्याप्रज्ञप्ति का जैसा स्वरूप कहा है उसी स्वरूप वाला - साक्षात् मूर्तिमान् व्याख्याप्रज्ञप्ति बन जाता है। कौन तत्त्व हेय, उपेक्ष्य-उपेक्षा करने योग्य एवं उपादेय हैं - इसकी व्याख्या उसके आचरण से ही स्पष्ट होने लग जाती है।
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ज्ञान की अपेक्षा- व्याख्याप्रज्ञप्ति में जैसी तत्त्व की व्याख्या की है, उसका वह ज्ञाता और विज्ञाता बन जाता है । वह स्वयं व्याख्याप्रज्ञप्ति के समान तत्त्व की व्याख्या करने में समर्थ - अति समर्थ बन जाता है।
इस प्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति से चरण-करण की प्ररूपणा कही जाती है। यह व्याख्याप्रज्ञप्ति है । अब सूत्रकार छठे अंग का परिचय देते हैं
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६. ज्ञाता धर्मकथा
से किं तं णायाधम्मकहाओ ? णायाधम्मकहासु णं णायाणं णगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरों, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इडिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाइं, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति ।
प्रश्न- वह ज्ञाता धर्मकथा क्या है ?
उत्तर - ज्ञाता धर्मकथा के ज्ञाता विभाग में नायकों के नगर, नगर के उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, नगर में धर्माचार्य का पदार्पण, सेवा में राजा, माता-पिता आदि का गमन, धर्माचार्य की धर्मकथा, नायक की इहलौकिक-पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धि, भोगों का परित्याग, दीक्षा का ग्रहण, दीक्षा
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