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नन्दी सूत्र
सेणं अंगट्टयाए चउत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले ।
अर्थ - समवायांग, अंगों में चौथा अंग है। इसका एक ही श्रुतस्कंध है, एक ही अध्ययन है, एक ही उद्देशकाल है और एक ही समुद्देशनकाल है।
एगे चोयाले सयसहस्से पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा ।
अर्थ - १ लाख ४४ सहस्र पद हैं। संख्येय अक्षर हैं। (वर्तमान में १६६७ श्लोक प्रमाण अक्षर हैं) अनन्त गम हैं। अनन्त पर्यव हैं। परित्त त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं।
सासयकडणिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, णिदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति ।
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अर्थ - शाश्वत और कृत पदार्थों के विषय में निबद्ध और निकाचित जिनप्रज्ञप्त भाव कहे जाते हैं। प्रज्ञप्त, प्ररूपित, दर्शित, निदर्शित और उपदर्शित किये जाते हैं।
से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से त्तं समवाए ॥ ४८ ॥
अर्थ - क्रिया की अपेक्षा समवायांग पढ़ने वाला जैसा समवायांग का स्वरूप कहा है, उसी स्वरूप वाला - साक्षात् मूर्तिमान् समवायांग बन जाता है। ज्ञान की अपेक्षा समवायांग में जैसा तत्त्व का निर्णय किया है, उसका ज्ञाता और विज्ञाता बन जाता है।
इस प्रकार समवायांग में चरणकरण की प्ररूपणा की जाती है। यह समवायांग है। अब सूत्रकार पाँचवें अंग का परिचय देते हैं ।
५. व्याख्या प्रज्ञप्ति ( भगवती )
से किं तं विवाहे ? विवाहे णं जीवा विआहिज्जंति, अजीवा विआहिज्जंति, जीवाजीवा विआहिज्जंति, ससमए विआहिज्जइ, परसमए विआहिज्जइ, ससमएपरसमए विआहिज्जइ, लोए विआहिज्जइ, अलोए विआहिज्जइ, लोयालोए विआहिज्जड़ ।
प्रश्न - वह 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' = भगवती क्या है ?
अर्थ - जिसके द्वारा जीवादि पदार्थों का विवेचन किया जाये, वह 'व्याख्या' है। जिसमें व्याख्या करके जीव आदि पदार्थों को समझाया जाता हो, वह 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' है ।
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