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________________ श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - समवायांग २४३ ४.समवायांग से किं तं समवाए? समवाए णं जीवा समासिज्जंति, अजीवा समासिज्जंति, जीवाजीवा समासिज्जंति, ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमयपरसमए समासिज्जइ, लोए समासिज्जइ, अलोए समासिज्जइ, लोयालोए समासिज्जइ। प्रश्न - वह समवायांग क्या है? अर्थ - समवायांग में जीव, अजीव, जीवाजीव, स्व-समय, पर-समय, स्व-पर-समय, लोक, अलोक, लोकालोक, इनका जैसा स्वरूप है, वैसा ही स्वरूप स्वीकार किया है। विवेचन - जिसके द्वारा जीवादि पदार्थों का सम्यक् निर्णय हो, उसे समवाय (सम्+अवाय) कहते हैं। विषय - समवायांग में कहीं १. जीवों का समवाय अथवा समाश्रय किया जाता है, जैसा उनका स्वरूप है, वही स्वरूप बुद्धि से स्वीकृत किया जाता है अथवा समास्य किया जाता है, उन्हें कुप्ररूपणा से निकाल कर सम्यक् प्ररूपणा में लाया जाता हैं, कहीं २. अजीवों का समवाय किया जाता है, कहीं ३. जीव और अजीव दोनों का समवाय किया जाता है, कहीं ४. स्व-समय का समवाय किया जाता है, कहीं ५. पर-समय का समवाय किया जाता है, कहीं ६. स्व-समय पर-समय दोनों का समवाय किया जाता है, कहीं ७. लोक का समवाय किया जाता है, कहीं ८. अलोक का समवाय किया जाता है, कहीं ९. लोक-अलोक दोनों का समवाय किया जाता है। - समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयविवड्डियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ, दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गो समासिज्जइ। ___ भावार्थ - समवायांग में एक से लेकर एक-एक की वृद्धि से सौ तक की संख्या में बढ़े हुए जीव आदि भावों का कथन किया जाता है। द्वादशांग गणिपिटक का परिचय दिया जाता है और परिमाण बताया जाता है। (नन्दी में दिये जा रहे इस परिचय से समवायांग में दिया गया परिचय विस्तृत और प्रेरक है।) ___ समवायस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ णिज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। अर्थ - समवायांग में परित्त वाचनाएँ, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेष्ट, संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियाँ, संख्येय संग्रहणियाँ और संख्येय प्रतिपत्तियाँ हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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