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नन्दी सूत्र
प्रश्न - वह आचारांग क्या है?
उत्तर - आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों का-१. आचार.२. गोचर ३. विनय ४. वैनयिक ५. शिक्षा ६. भाषा ७. अभाषा ८. चरण ९. करण १०. यात्रा-मात्रा-इत्यादि वृत्तियों का निरूपण किया गया है। वह संक्षेप में पाँच प्रकार का है, यथा-१. ज्ञानाचार २. दर्शनाचार ३. चारित्राचार ४. तपाचार और ५. वीर्याचार।
विवेचन - तीर्थंकरों से कही हुई और पहले के सत्पुरुषों से आचरण की हुई, ज्ञान आदि के आराधना की विधि को 'आचार' कहते हैं तथा उसके प्रतिपादक ग्रंथ को भी उपचार से 'आचार'
कहते हैं।
विषय- आचारांग में श्रमण-मोक्षप्रद तप में श्रम करने वाले या समस्त जीवों से वैर का शमन करने वाले अथवा इष्ट अनिष्ट में समभाव रखने वाले, निर्ग्रन्थों का आभ्यन्तर और बाह्य विषय, कषाय, कंचन, कामिनी आदि की परिग्रह रूपी गाँठ से निर्मुक्त सन्तों का आचार कहा जाता है।
उदाहरण - जैसे १. गोचर-गाय चरने के समान भिक्षा लाने की विधि, २. विनय-ज्ञानी आदि के प्रति भक्ति बहुमान ३. वैनयिक-विनय का फल, वैनेयिकी बुद्धि तथा कर्मक्षय आदि ४. शिक्षा ग्रहण करने योग्य शिक्षा-ज्ञान और आसेवन करने योग्य शिक्षा क्रिया, ५. भाषा-बोलने योग्य निर्वद्य सत्य और व्यवहार भाषा ६. अभाषा-सर्वथा नहीं बोलने योग्य असत्य और मिश्र भाषा तथा सावध सत्य और व्यवहार भाषा ७. चरण-पांच महाव्रत आदि मूलगुण रूप चरण के ७० बोल ८. करण-पाँच समिति आदि उत्तर गुण रूप करण के ७० बोल ९. यात्रा-मात्रा-संयम रूप यात्रा के लिए आहार की मात्रा काल आदि १०. वृत्ति-विविध प्रकार के अभिग्रह विशेष से वर्तना आदि का आचारांग में कथन किया जाता है।
भेद - आचार के संक्षेप में मूल पाँच भेद हैं (और उत्तर भेद ३१ है)। वे इस प्रकार हैं
(१)ज्ञान आचार - १. काल २. विनय ३. बहुमान ४. उपधान ५. अनिन्हवन ६. सूत्र ७. अर्थ और ८. तदुभय।
(२) दर्शन आचार - १. निःशंकित २. नि:कांक्षित ३. निर्विचिकित्स ४. अमूढदृष्टि ५. उपबृंहण ६. स्थिरीकरण ७. वात्सल्य और ८. प्रभावना।
(३) चारित्र आचार - १. ईर्या समिति २. भाषा समिति ३. एषणा समिति ४. आदान-निपेक्षणा • समिति और ५. उच्चार-प्रस्रवण समिति ६. मनोगुप्ति ७. वचन गुप्ति और ८. काय गुप्ति।
(४) तप आचार - १. अनशन २. ऊनोदरी ३. भिक्षाचरी वृत्तिसंक्षेप-अभिग्रह ४. रस परित्याग ५. कायक्लेश ६. प्रतिसंलीनता ७. प्रायश्चित ८. विनय ९. वैयावृत्य १०. स्वाध्याय ११. ध्यान और १२. व्युत्सर्ग (सब मिलाकर ३६)।
(५) वीर्य आचार - उक्त अर्हन्त भगवन्त कथित ३६ आचारों के प्रति १. अपना बल-वीर्य न
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