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मात ज्ञान - चण्ड कौशिक सर्प
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आलोचना नहीं की। “सम्भव है गुरु महाराज आलोचना करना भूल गये हों"-ऐसा सोच कर तुम्हारे शिष्य ने सरल बुद्धि से तुमको वह पाप फिर याद दिलाया। शिष्य के वचन सुनते ही तुम्हे क्रोध आ गया। तीव्र क्रोध करके तुम शिष्य को मारने के लिए उसकी तरफ दौड़े। बीच में स्तम्भ से तुम्हारा सिर टकरा गया, जिससे तुम्हारी मृत्यु हो गई। हे चण्डकौशिक! तुम वही हो। क्रोध में मृत्यु होने से तुम्हें यह सर्प योनि प्राप्त हुई है। अब फिर क्रोध करके तुम अपने जन्म को क्यों बिगाड़ रहे हो? समझो! समझो!! बोध प्राप्त करो!!!"
भगवान् के उपरोक्त वचनों को एकाग्रता-पूर्वक सुनने से चण्डकौशिक को उसी समय जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। वह अपने पूर्वभव को देखने लगा। भगवान् की पहचान कर उसने विनयपूर्वक वन्दना-नमस्कार किया और वह अपने अपराध के लिये बार-बार पश्चात्ताप करने लगा और भगवान् को खमाया।
- जिस क्रोध के कारण सर्प योनि प्राप्त हुई, उस क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिये और मेरी विषैली दृष्टि से कहीं किसी प्राणी को कष्ट न हो, कृत अपराधों का प्रायश्चित्त हो, इसलिए चण्डकौशिक ने भगवान् की साक्षी से ही अनशन कर लिया। उसने अपना मुँह बिल में डाल दिया और शरीर को बिल के बाहर ही उपसर्ग सहन करने के लिए रहने दिया। जब ग्वालों के लड़कों ने भगवान् को सकुशल देखा, तो वे भी वहाँ आये। सर्प की यह अवस्था देख कर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। वे पत्थर और ढेले मार कर तथा लकड़ी आदि से साँप को छेड़ने लगे, किंतु साँप ने इन सब कष्टों को समभाव से सहन किया और निश्चल रहा। तब उन लड़कों ने जाकर लोगों से यह बात कही। लड़कों की बात सुन कर बहुत से स्त्री पुरुष आकर सर्प देखने लगे। बहुत-सी ग्वालिने घी, दूध आदि से उसकी पूजा करने लगीं। उनकी सुगंध के कारण सर्प के शरीर में चीटियाँ लग गई। चींटियों ने काट-काट कर साँप के शरीर को चालनी सरीखा बना दिया। इस असह्यवेदना को भी सर्प समभावपूर्वक सहन करता रहा और विचारता रहा कि मेरे पापों की तुलना में यह कष्ट तो कुछ भी नहीं है। 'मेरे भारी शरीर से दब कर कोई चींटी मर न जाय'-ऐसा सोच कर उसने अपने शरीर को किंचित्मात्र नहीं हिलाया और सभी कष्टों को समभावपूर्वक सहन करता हुआ शांत चित्त बना रहा। पन्द्रह दिन का अनशन करके इस शरीर को छोड़ कर वह आठवें सहस्रार देवलोक में महर्द्धिक देव हुआ।
'भगवान् महावीर स्वामी के विशिष्ट एवं अलौकिक रक्त का आस्वाद पाकर चण्डकौशिक ने विचार किया और ज्ञान प्राप्त करके अपना जन्म सुधार लिया। यह चण्डकौशिक की जातिस्मरण ज्ञानजनित पारिणामिक बुद्धि थी।
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