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________________ १८० नन्दी सूत्र २०. गेंडे का भव सुधार (खड्गी) किसी नगर में एक श्रावक था। वह श्रावक के व्रतों का कुशल पालन करते हुए जीवन व्यतीत करता था। अल्प आयुष्य के कारण युवावस्था में ही उसकी मृत्यु हो गई। व्रत विराधना तथा अशुभ परिणति के कारण मृत्यु पाकर वह 'गेंडा' नामक एक जंगली हिंसक जानवर हो गया। वह बहुत पापी एवं क्रूर था और उस वन में आने वाले मनुष्य को खा जाता था। एक समय उस वन में होकर कुछ साधु जा रहे थे। उन्हें देखकर उसमे उन पर आक्रमण करना चाहा, किंतु वह अपने प्रयत्न में सफल नहीं हो सका। मुनियों के शांत मुख को देखकर उसका क्रोध भी शांत हो गया। इस पर विचार करते-करते उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसने अपने पूर्व भव को जाना। इस भव को सुधारने के लिये उसने उसी समय अनशन कर लिया। आयुष्य पूरा करके वह देवलोक में गया। उसने अपने वर्तमान भव को सुधारने के लिये अनशन कर लिया। यह उस गेंडे की जातिस्मरण ज्ञानजनित पारिणामिक बुद्धि थी। २१. विशाला नगरी का विनाश (स्तूप) चेड़ा कुणिक संग्राम में, इन्द्रों की सहायता से, कोणिक की विजय होने पर महाराज चेटक विशाला नगरी में आ गये और नगरी के द्वार बन्द करवा दिये। कोणिक ने नगरी के कोट को गिराने की बहुत कोशिश की, किंतु वह उसे नहीं गिरा सका। तब इस तरह की आकाशवाणी हुई समणे जदि कुलबालुए, मागधियं गमिस्सए। . राया यह असोगचंदे य, वेसालिं णगरी गहिस्सए॥ . अर्थात्-यदि कुलबालुक नामक साधु, चरित्र से पतित होकर मागधिका वेश्या से गमन करे, तो कोणिक राजा, कोट को गिरा कर विशाला नगरी को ले सकता है। यह सुन कर कोणिक राजा ने राजगृह से मागधिका वेश्या को बुला कर उसे सारी बात समझा दी। मागधिका ने कुलबालुक को कोणिक के पास लाना स्वीकार किया। ___ किसी आचार्य के पास एक साधु था। आचार्य जब भी उसे कोई हित की बात कहते, तो वह अविनीत होने के कारण सदा उसका विपरीत अर्थ लेता और आचार्य पर क्रोध करता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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