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________________ १६४ ****** नन्दी सूत्र Jain Education International १२. चाणक्य का चन्द्र पान करवाना चाणक्य की बुद्धि के बहुत से उदाहरण हैं । उनमें से यहाँ एक उदाहरण दिया जाता है। एक समय पाटलिपुत्र के राजा नन्द ने 'चाणक्य' नाम के ब्राह्मण को अपने नगर से निकल . जाने का दण्ड दिया । वहाँ से निकल कर दण्ड का बदला लेने की भावना से चाणक्य संन्यासी का भेष बना लिया और घूमता हुआ वह मौर्यग्राम में पहुँचा । वहाँ एक गर्भवती क्षत्रियाणी को चन्द्रमा पीने का दोहला उत्पन्न हुआ । उसका पति बहुत असमंजस में पड़ा कि इस दोहले को कैसे पूरा किया जाये ? दोहला पूर्ण न होने से वह क्षत्रियाणी प्रतिदिन दुर्बल होने लगी। संन्यासी के भेष में गाँव में घूमते हुए चाणक्य को उस राजपूत ने इस विषय में पूछा। उसने कहा - "मैं इस दोहले को अच्छी तरह पूर्ण करवा दूँगा।" चाणक्य ने गाँव के बाहर एक मण्डप बनवाया। उसके ऊपर - कपड़ा तान दिया गया । चाणक्य ने कपड़े में चन्द्रमा के आकार का एक गोल छिद्र करवा दिया। पूर्णिया को रात के समय उस छेद के नीचे एक थारी में खीर रखवा दी और उस दिन उस क्षत्रियाणी को भी वहां बुला लिया। जब चन्द्रमा बराबर उस छेद के ऊपर आया और उसका प्रतिबिम्ब उस थाली में पड़ने लगा, तो चाणक्य ने क्षत्रियाणी से कहा- "लो, यह चन्द्रमा है, इसे पी जाओ।" हर्षित होती हुई क्षत्रियाणी ने उसे पी लिया । ज्योंही वह पी चुकी, त्योंही चाणक्य ने उस छेद के ऊपर दूसरा कपड़ा डाल कर उसे बन्द करवा दिया । चन्द्रमा का प्रकाश पड़ना बन्द हो गया, तो क्षत्रियाणी ने समझा - "मैं सचमुच चन्द्रमा को पी गई हूँ ।" अपने दोहले को पूर्ण हुआ जान कर क्षत्रियाणी को बहुत हर्ष हुआ। वह पहले की तरह स्वस्थ हो गई और सुखपूर्वक अपने गर्भ का पालन करने लगी । गर्भ-काल पूर्ण होने पर एक परम तेजस्वी बालक का जन्म हुआ । गर्भ के समय माता को चन्द्र पीने का दोहला उत्पन्न था और गुप्त रीति से पूर्ण किया गया, इसलिए उसका नाम 'चन्द्रगुप्त' रखा गया। जब चन्द्रगुप्त जवान हुआ, तब वह चाणक्य की सहायता से पाटलिपुत्र का राजा बना । चन्द्र पीने के दोहले का पूरा कराने में चाण्क्य की पारिणामिकी बुद्धि थी। *************************** १३. स्थूलभद्र का त्याग पाटलिपुत्र में नन्द का नाम का राजा राज्य करता था। उसके मंत्री का नाम सकडाल था । उसके स्थूलभद्र और श्रीयक नाम के दो पुत्र थे । यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेना, वेणु और रेणु नामकी सात पुत्रियाँ थीं। उनकी स्मरण शक्ति बहुत तेज थी । यक्षा की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि जिस बात को वह एक बार सुन लेती, वह ज्यों की त्यों उसे एक ही बार में याद हो जाती For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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