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मति ज्ञान - वरधनु की चतुराई
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मंत्रीपुत्र का दृष्टान्त दूसरे प्रकार से भी दिया जाता है। यथा -
एक राजकुमार और मंत्रीपुत्र दोनों संन्यासी का वेष बना कर अपने राज्य से निकल गये। चलते हुए वे एक नदी के किनारे पहुँचे। रात्रि व्यतीत करने के लिए वे वहीं ठहर गये। वहाँ एक भविष्यवेत्ता पहले से ठहरा हुआ था। रात्रि को एक श्रृगाली विचित्र रीति से चिल्लाने लगी। राजकुमार ने उस भविष्यवेत्ता से पूछा-"इस प्रकार श्रृंगाली के चिल्लाने से क्या अर्थ सूचित होता है?" नैमित्तिक ने कहा - यह सूचित होता है कि - नदी में एक मुर्दा बहता हुआ जा रहा है। उसकी कमर में सौ मोहरें बंधी हुई हैं।' यह सुन कर राजकुमार नदी में कूद पड़ा और उस मुर्दे को बाहर निकाल लाया। उसकी कमर में बंधी हुई सौ मोहरें उसने ले ली और उस मृतकलेवर को श्रृगाली की तरफ फेंक दिया। राजकुमार अपने स्थान पर आकर सो गया। श्रृगाली फिर चिल्लाने लगी। राजकुमार ने नैमित्तिक से इसका कारण पूछा। उसने कहा - 'यह श्रृगाली अपनी कृतज्ञता प्रकाशित कर रही है जिसका भाव यह है कि - "हे राजकुमार! तुमने बहुत अच्छा किया।" नैमित्तिक का कथन सुन कर राजकुमार बहुत खुश हुआ।
मंत्रीपुत्र इस सारी बातचीत को चुपचाप सुन रहा था। उसने विचार किया - "राजकुमार ने मुर्दे में से जो सौ मोहरें ग्रहण की हैं, वे कृपण भाव से ग्रहण की या वीरता से ग्रहण की? मुझे इस बात की परीक्षा करनी चाहिए। यदि इसने कृपण भाव से ग्रहण की है तब तो यह समझना चाहिये कि इसमें राजा के योग्य उदारता और वीरता आदि गुण नहीं हैं, इसलिए इसे राज्य प्राप्त नहीं होगा। ऐसी दशा में इसके साथ फिर एक व्यर्थ कष्ट उठाने से क्या लाभ? यदि राजकुमार ने ये मोहरें अपनी वीरता बतलाने के लिए ग्रहण की हैं, तो इसे राज्य अवश्य मिलेगा।" इस प्रकार सोच कर प्रात:काल होने पर मंत्रीपुत्र ने राजकुमार से कहा-"मेरा पेट बहुत दुःखता है। मैं आपके साथ चल नहीं सकूँगा। इसलिए आप मुझे यहाँ छोड़कर जा सकते हैं।" राजकुमार ने कहा - "मित्र! ऐसा कभी नहीं हो सकता। मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकता। तुम सामने दिखाई देने वाले गाँव तक चलो। वहाँ किसी वैद्य से तुम्हारा इलाज करवायेंगे।" मंत्रीपुत्र वहाँ तक गया। राजकुमार ने एक चतुर वैद्य को बुलाकर उसे दिखाया और कहा - "ऐसी बढ़िया दवा दो, जिससे इसके पेट का दर्द तत्काल दूर हो जाय।" यह कह कर राजकुमार ने दवा के मूल्य के रूप में वैद्य को.वे सौ मोहरें दे दी।
राजकुमार की उदारता देख कर मंत्रीपुत्र को दृढ़ विश्वास हो गया कि इसे अवश्य राज्य प्राप्त होगा। थोड़े दिनों में ही राजकुमार को राज्य प्राप्त हो गया।
राजकुमार की उदारता को देख कर उसे राज्य प्राप्त होने का निर्णय करना, मंत्रीपुत्र की पारिणामिकी बुद्धि थी।
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