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________________ १६२ नन्दी सूत्र भाग गया है, तो उसने चारों ओर अपने सैनिक भेजे और आदेश दिया कि - 'जहाँ भी ब्रह्मदत्त और वरधनु मिलें, उन्हें पकड़ कर मेरे पास लाओ।' इन दोनों की खोज करते हुए सैनिक उसी वन में पहुँच गये। जब वरधनु पानी लेने के लिए एक सरोवर के पास पहुँचा, तो राजपुरुषों ने उसे देख लिया और पकड़ लिया। उसने उसी समय उच्च स्वर से संकेत किया, जिससे ब्रह्मदत्त समझ गया और वहाँ से उठ कर तत्काल भाग निकला। सैनिकों ने वरधनु से ब्रह्मदत्त के विषय में पूछा, किन्तु उसने कुछ नहीं बताया। तब वे उसे मार-पीट करने लगे। वह जमीन पर गिर पड़ा और साँस रोक कर निश्चेष्ट बन गया। 'यह मर गया है' - ऐसा समझ कर राजपुरुष उसे वहीं छोड़ कर चले गये। .. सैनिकों के चले जाने के बाद वरधनु उठा और राजकुमार को ढूँढ़ने लगा, किन्तु उसका कहीं भी पता नहीं लगा। तब वह अपने कुटुम्बियों की खबर लेने के लिए कम्पिलपुर की ओर चला। मार्ग में उसे संजीवन और निर्जीवन नाम की दो गुटिकाएं प्राप्त हुई। उन्हें लेकर वह आगे चलने लगा। कम्पिलपुर के पास पहुंचने पर उसे एक चाण्डाल मिला। उसने वरधनु को बतलाया कि - 'तुम्हारे सब कुटुम्बियों को राजा ने कैद कर लिया है।' तब वरधनु ने कुछ लालच देकर उस. चाण्डाल को अपने वश में करके उसे निर्जीवन गुटिका दी और सारी बात समझा दी। . चाण्डाल ने जाकर वह गुटिका वरधनु के पिता धनु को दी। उसने अपने सब कुटुम्बीजनों की आँखों में उसका अंजन किया, जिससे वे तत्काल निर्जीव सरीखे हों गये। उन सब को मरे हुए जान कर दीर्घपृष्ठ राजा ने उन्हें श्मशान में ले जाने के लिए उस चाण्डाल को आज्ञा दी। वरधनु ने जो स्थान बताया था, उसी स्थान पर वह चाण्डाल उन सभी को छोड़ आया। इसके बाद वरधनु ने ब की आँखों में संजीवन गटिका का अंजन किया, जिससे वे सब स्वस्थ हो गये। वरधनु को अपने सामने देख कर वे सब आश्चर्य करने लगे। वरधनु ने उनसे सारी हकीकत कह सुनाई। तत्पश्चात् वरधनु ने उन सब को अपने किसी सम्बन्धी के यहाँ रख दिया और वह स्वयं ब्रह्मदत्त को ढूँढ़ने के लिए निकल गया। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह बहुत दूर एक सघन वन में पहुँच गया। वहाँ उसे ब्रह्मदत्त मिल गया। फिर वे अनेक नगरों और देशों को जीतते हुए आगे बढ़ते गये। अनेक राजकन्याओं के साथ ब्रह्मदत्त का विवाह हुआ। छह खण्ड पृथ्वी को विजय करके वे वापिस कम्पिलपुर लौटे। दीर्घपृष्ठ राजा को मारकर ब्रह्मदत्त ने वहाँ का राज्य प्राप्त किया। चक्रवर्ती की ऋद्धि का उपभोग करते हुए सुखपूर्वक समय व्यतीत करने लगा। __ मंत्री-पुत्र वरधनु ने राजकुमार ब्रह्मदत्त की और अपने सभी कुटुम्बीजनों की रक्षा कर ली। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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