________________
१३०
नन्दी सूत्र
*****************
***********
मैं कुछ नहीं जानता।" सेठ की बात सुन कर वह बहुत निराश हुआ। कोई उपाय न देख कर उसने न्यायालय में फरियाद की। न्यायाधीश ने उससे पूछा-"तुमने सेठ के पास थैली कब रखी थी?" उसने थैली रखने का संवत् और दिन बता दिया।
न्यायाधीश ने मोहरों पर का समय देखा, तो मालूम हुआ कि वे बाद के कुछ वर्षों की नई बनी हुई है और थैली तो इन मोहरों के समय से कई वर्ष पहले रखी गई थी। न्यायाधीश ने सेठ को झूठा ठहराया। धरोहर के मालिक को असली मोहरें दिलवाईं और सेठ को दण्ड दिया। न्यायाधीश की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
२२. लोभी के साथ धूर्तता
(भिक्ष) . किसी जगह एक महंतजी रहते थे। उन्हें विश्वासपात्र समझ कर एक मनुष्य ने उनके पास अपनी मोहरों की थैली धरोहर रखी और वह यात्रा करने के लिए चला गया। कुछ समय बाद वह . लौट कर आया और महंतजी के पास जाकर उसने अपनी थैली माँगी। महंतजी टालमटूल करने ६ लिए उसे आज-कल बताने लगे। धरोहर रखने वाले को संन्यासी की नियत में सन्देह हुआ। उसने कुछ जुआरियों से मित्रता की और अपनी हकीकत कह सुनाई। उन्होंने कहा-"तुम चिन्ता मत करो, हम तुम्हारी थैली दिलवा देंगे। तुम अमुक दिन, अमुक समय संन्यासी जी के पास आकर अपनी थैली माँगना। हम वहाँ आगे तैयार मिलेंगे।" - जुआरियों ने गेरुए वस्त्र पहनकर संन्यासी का वेश बनाया। हाथ में सोने की खूटियाँ लेकर वे महंतजी के पास आये और कहने लगे-"महंतजी! हम यात्रा करने के लिए जा रहे हैं। आप बड़े विश्वासपात्र हैं। इसलिए ये सोने की खूटियाँ हम आपके पास रखना चाहते हैं। यात्रा से वापिस लौट कर हम ले लेंगे।"
इस प्रकार बातचीत हो ही रही थी कि पूर्व संकेत के अनुसार वह व्यक्ति महंतजी के पास आया और अपनी थैली मांगने लगा। सोने की खूटियाँ धरोहर रखने वाले सन्यासियों के सामने अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए महंतजी ने उसी समय उसकी थैली लौटा दी। वह अपनी थैली लेकर रवाना हुआ। अपना प्रयोजन सिद्ध हो जाने से जुआरी लोग भी कुछ बहाना बना कर सोने की खूटियाँ लेकर अपने स्थान पर लौट आये और महंतजी मुँह ताकते रह गये। महंतजी से धरोहर दिलाने की जुआरियों की औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org