________________
मति ज्ञान - नकली मोहरें किसकी थी?
१२९
******************
*********************-*-
*-*-*-*******
**************
**************
२०. खरे खोटे रुपयों का भेद
(अंक) किसी नगर में एक प्रतिष्ठित सेठ रहता था। लोग उसे बहुत विश्वासपात्र समझते थे। एक समय एक मनुष्य ने एक हजार रुपयों से भरी हुई एक थैली उसके पास रखी और परदेश चला गया। सेठ ने उस थैली के नीचे के भाग को काट कर उसमें से असली रुपये निकाल लिये और बदले में नकली रुपये भर दिये। थैली के कटे हुए भाग को सावधानी पूर्वक सिलवा कर उसने ज्यों की त्यों रख दी।
कुछ दिनों बाद वह मनुष्य परदेश से लौट आया। सेठ के पास जाकर उसने अपनी थैली मांगी और सेठ ने उसकी थैसी दे दी। घर आकर उसने थैली खोली और देखा, तो सभी खोटे रुपये निकले। उसने जाकर सेठ से कहा। सेठ ने उत्तर दिया-"मैंने तो तुम्हें तुम्हारी थैली ज्यों की त्यों लौटा दी है। अब मैं कुछ नहीं जानता।" जब किसी भी तरह मामला आपस में नहीं सुलझा, तब उस मनुष्य ने न्यायालय में फरियाद की। न्यायाधीश ने पूछा-"तुम्हारी तैली में कितने रुपये थे?" उसने कहा-"एक हजार रुपये।" न्यायाधीश ने उसमें खरे रुपये डालकर देखा, तो जितना भाग कटा हुआ था उतने रुपये बाकी बच गये। शेष सब समा गये। न्यायाधीश को उस मनुष्य की बात सच्ची मालूम पड़ी। उसने सेठ को बुलाया और अनुशासन पूर्वक असली रुपये दिलवा दिये। न्यायाधीश की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
२१. नकली मोहरें किसकी थीं?
(नाणक) किसी नगर में एक सेठ रहता था। लोगों का उस पर बहुत विश्वास था। एक समय एक मनुष्य ने मोहरों से भरी हुई एक थैली उसके पास रखी और वह परदेश चला गया। कुछ वर्षों बाद सेठ ने उस थैली में से असली मोहरें निकाली और गिन कर उतनी ही नकली मोहरें उस थैली में भर दी और सावधानीपूर्वक थैली को ज्यों की त्यों सिलवा कर रख दी। बहुत वर्षों के पश्चात् उस धरोहर का स्वामी देशांतर से लौट आया और सेठ के पास जाकर उसने थैली माँगी। सेठ ने उसे थैली दे दी। वह उसे लेकर घर चला आया। जब थैली को खोल कर देखी, तो असली मोहरों की जगह नकली मोहरें निकली। उसने जाकर सेठ से कहा। सेठ ने कहा-"तुमने मुझे जो थैली दी थी, वही मैंने तुमको त्यों की ज्यों वापिस लौटा दी। नकली असली के विषय में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org