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________________ मति ज्ञान - लड़के बन्दर बन गए ? ******************************************************** १३१ २३. लड़के बन्दर बन गए ? (चेटक ) एक गाँव में दो भिन्न प्रकृति वाले मित्र रहते थे। उनमें से एक कपटी था और दूसरा सरल । एक बार वे किसी दूसरे गाँव से अपने गाँव लौट रहे थे कि रास्ते में जंगल में उन्हें एक निधान (गड़ा हुआ धन) प्राप्त हुआ। उसे देख कर कपटी मित्र ने मायापूर्वक कहा- “मित्र! आज तो अच्छा नक्षत्र नहीं हैं। इसलिए कल आकर हम शुभ नक्षत्र में इस निधान को ले जायेंगे ।" दूसरे मित्र ने सरल भाव से उसकी बात मानली और उस निधान को वहीं छोड़ कर वे दोनों अपने घर चले गये। रात के समय कपटी मित्र ने आकर सारा धन निकाल लिया और बदले में कोयले भर दिये। . Jain Education International ******** दूसरे दिन प्रातःकाल दोनों मित्र वहाँ जाकर निधान खोदने लगे, तो उसमें से कोयले निकले। कोयलों को देखते ही कपटी मित्र सिर पीट-पीट कर रोने लगा " हाय! हम बड़े अभागे हैं। देव ने हमें आँखे देकर वापिस छीन लीं, जो निधान दिखला कर कोयले दिखलाये।" इस प्रकार ढोंगपूर्ण रोता चिल्लाता हुआ वह कपटी बीच-बीच में अपने मित्र के चेहरे की ओर देख लेता था कि 'कहीं उसे मुझ पर शंका तो नहीं है।' उसका यह ढोंग देख कर दूसरा मित्र समझ गया कि "इसी की यह धूर्तता है, फिर भी अपने मनोभाव छिपा कर आश्वासन देते हुए उसने कहा - " मित्र ! अब चिन्ता करने से क्या लाभ? रोने-पीटने से निधान थोड़े ही मिलता है। क्या किया जाय ? अपना भाग्य ही ऐसा है।" इस प्रकार उसने उसको सांत्वना दी। फिर दोनों अपने-अपने घर चले गये । कपटी मित्र से बदला लेने के लिए दूसरे मित्र ने एक उपाय सोचा । उसने कपटी मित्र की एक मिट्टी की मूर्ति बनवाई और उसे घर में रख दी। फिर उसने दो बन्दर पाले । एक दिन उसने प्रतिमा को गोद में, हाथों पर, कन्धों पर तथा शरीर के अन्य भागों में बन्दरों के खाने योग्य चीजें डाल दी और फिर उन बन्दरों को छोड़ दिया। बन्दर भूखे थे । वे प्रतिमा पर चढ़ कर उन चीजों को खाने लगे। बन्दरों को अभ्यास कराने के लिए वह प्रतिदिन इसी तरह करने लगा और बन्दर भी प्रतिमा पर चढ़कर वहाँ रही हुई चीजें खाने लगे। धीरे-धीरे बन्दर प्रतिमा से इतने हिल-मिल गये कि वे प्रतिमा से यों ही खेलने लगे। इसके बाद किसी पर्व के दिन उसने अपने कपटी मित्र कें दोनों लड़कों को अपने घर भोजन करने का निमन्त्रण दिया और भोजन कराने के बाद उन्हें किसी गुप्त स्थान पर छिपा दिया। जब बालक लौट कर नहीं आये, तो दूसरे दिन लड़कों का पिता अपने मित्र के घर आया और अपने दोनों लड़कों के लिए पूछा। उसने कहा- " उस घर में हैं।" उस घर में मित्र के आने For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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