SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मति ज्ञान - भाँड की बुद्धिमत्ता १२१ * * * * * **************************** ** * *************** **************** ** तक नाव पानी में डूब गई। इसके बाद उसने पत्थरों को तोल लिया और उनका जितना वजन हुआ, उतना ही वजन हाथी का बता दिया। - राजा उसकी बुद्धिमत्ता पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे अपना प्रधानमंत्री बना दिया। हाथी को तौलने में उस पुरुष की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। १०. भाँड की बुद्धिमत्ता (घयण) एक भाँड था। वह राजा के बहुत मुँह लगा हुआ था। राजा भाँड के सामने अपनी रानी की प्रशंसा बहुत किया करता था। एक दिन राजा ने कहा-"मेरी रानी पूर्ण आज्ञाकारिणी है।" भाँड ने कहा-"महाराज! रानीजी अपने स्वार्थवश आज्ञाकारिणी है।" राजा ने कहा-"वह स्वार्थिनी नहीं है।" भाँड - "आपके कथन में सत्यांश हो सकता है, परन्तु मैंने जो कहा है उसकी आप परीक्षा ले सकते हैं।" राजा - "परीक्षा किस प्रकार ली जा सकती है?" - भाँड - "रानीजी से कहिये कि आप दूसरा विवाह करना चाहते हैं और नई रानी को पटरानी बनायेंगे तथा उसके पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनायेंगे।" दूसरे दिन राजा ने रानी से अपने एक और विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। रानी ने कहा "नाथ! आप अपनी इच्छा से दूसरा विवाह कर सकते हैं। परन्तु एक शर्त है-राजगद्दी का उत्तराधिकारी.वही होगा जो परम्परागत नियम से होता चला आया है। इसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता।" रानी की बात सुन कर राजा हँस दिया। रानी ने हँसने का कारण पूछा, किंतु राजा टालने लगा। रानी के अत्याग्रह करने पर राजा ने भाँड की कही हुई बात रानी से कह दी। राजा की बात सुनकर रानी बहुत कुपित हुई। रानी ने भाँड को निर्वासित करने की आज्ञा दे दी। रानी के इस कठोर आदेश को सुनकर भाँड बहुत घबराया और अपने बचाव का मार्ग सोचने लगा। उसे एक उपाय सूझा। उसने जूतों की एक गठड़ी बाँधी और उसे सिर पर उठाकर रानी के महल के सामने गया। उसने रानी को यह संदेश पहुँचा दिया कि-"आपकी आज्ञानुसार मैं यह देश छोड़कर दूसरे देश में जा रहा हूँ।" सिर पर गठड़ी देख रानी ने उससे पूछा-"यह क्या है?" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy