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________________ १२० - नन्दी सूत्र * * * * * * * * * * * * * * * बाहर के कौए यहाँ मेहमान आये हुए हैं ?" यह उत्तर सुनकर बौद्ध भिक्षु मौन हो गया और चुपचाप चला गया। जैन श्रमण की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी। ८. मल परीक्षा से पति की पहचान (उच्चार) किसी शहर में एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री अत्यंत रूपमती थी। एक बार वह अपनी - स्त्री को साथ लेकर दूसरे गाँव जा रहा था। मार्ग में ब्राह्मणी का सौंदर्य-देख कर.एक धूर्त मोहित हो गया और उसे अपनी ओर आकर्षित कर ली। वह ब्राह्मणी भी ब्राह्मण से अप्रसन्न थी, अतएव धूर्त के बहकावे में आ गई। कुछ दूर जाकर उस धूर्त ने ब्राह्मण से विवाद करना शुरू किया और कहने लगा कि "यह स्त्री मेरी है, इसलिए तुम इधर मत आओ।" ब्राह्मण कहने लगा-"यह मेरी स्त्री है।" इस प्रकार विवाद बढ़ जाने से वे दोनों न्याय कराने के लिए न्यायालय में पहुंचे। न्यायाधीश ने उन दोनों की बातें सुन कर दोनों को अलग-अलग बिठा दिया और उनसे पूछा कि"कल शाम को तुमने और तुम्हारी स्त्री ने क्या-क्या खाया था?" ब्राह्मण ने कहा-"मैंने और मेरी स्त्री ने तिल के लड्डु खाये थे।" धूर्त से पूछा तो उसने कुछ और ही बतलाया। इस पर न्यायाधीश ने ब्राह्मणी को जुलाब दिया। जुलाब लगने पर मल की परीक्षा कराई गई, तो उसमें तिल दिखाई दिये। न्यायाधीश ने ब्राह्मण को उसकी स्त्री सौंप दी और धूर्त को दण्ड देकर निकाल दिया। इस प्रकार न्याय करना न्यायाधीश की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। ... ९. हाथी का तौल - (गज) बसन्तपुर का राजा एक अतिशय बुद्धि सम्पन्न पुरुष की खोज में था, जिसे वह अपने राज्य का प्रधानमंत्री बना सके। बुद्धि की परीक्षा के लिए उसने एक हाथी चौराहे पर खड़ा करवा दिया और यह घोषणा करवाई कि "जो मनुष्य इस हाथी का तौल कर वजन बता देगा, उसे राजा बहुत बड़ा इनाम देगा।" राजा की घोषणा सुन कर एक बुद्धिमान् पुरुष ने हाथी का तौल करना स्वीकार किया। उसने बड़े तालाब में हाथी को नाव पर चढ़ाया और नौका को गहरे पानी में ले गया। हाथी के वजन से नाव, पानी में जितनी डुबी, वहाँ उसने एक लकीर खींच कर चिह्न कर दिया। फिर नाव किनारे लाकर हाथी को उतार दिया और उसमें उतने ही पत्थर भरे कि जिससे रेखांकित भाग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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