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________________ मति ज्ञान - कौओं की गिनती ११९ ************************************* ६. भ्रम रोग की दवा (शरट) एक समय एक सेठ, शौच निवृत्ति के लिए जंगल में गया। असावधानी से वह एक बिल पर बैठ गया। अचानक एक शरट (गिरगिट) दौड़ता हुआ आया और बिल में प्रवेश करते हुए उसकी पूँछ का स्पर्श सेठ के गुदाभाग से हो गया। सेठ के मन में यह भ्रम हो गया कि 'गिरगिट मेरे पेट में चला गया है।' इसी भ्रम के कारण वह अपने आपको रोगी समझ कर प्रतिदिन दुर्बल होने लगा। एक समय वह एक वैद्य के पास गया। वैद्य ने उसके रोग का सारा हाल पूछा। सेठ ने आदि से लेकर अन्त तक सारा वृत्तान्त कह सुनाया। वैद्य ने अपने बुद्धिबल से काम लिया और इस निश्चय पर पहुंचा कि सेठ को भ्रम रोग लगा है। इनका भ्रम मिटा देने से ही यह अच्छे हो जाएंगे। कुछ सोच कर वैद्य ने कहा-“सेठजी! मैं तुम्हारा रोग छुड़ा दूंगा, इसके लिए पूरे सौ रुपये लूंगा।" सेठ ने वैद्य की बात स्वीकार करली। वैद्य ने उनको विरेचक (दस्तावर) औषधि दी। इधर वैद्य ने लाख (लाक्षा) का एक गिरगिट बनाकर एक मिट्टी के बर्तन में रख दिया। फिर उस मिट्टी के बर्तन में सेठ को शौच जाने को कहा। शौच निवृत्ति के पश्चात् वैद्य ने सेठ को मिट्टी के बर्तन में पड़े हुए गिरगिट को दिखला कर कहा-"देखिये सेठजी! आपके पेट से गिरगिट निकल गया है।" उसे देखकर सेठ का भ्रम दूर हो गया। अब वह अपने आपको नीरोग अनुभव करने लगा और नों में उसका शरीर पहले की तरह पुष्ट हो गया। लाख का गिरगिट बनाकर इस प्रकार सेठ का बहम दूर करने में वैद्य की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। ७. कौओं की गिनती (काक) बेनातट नगर में एक समय एक बौद्ध भिक्षु ने किसी जैन श्रमण से पूछा-"तुम अपने देव अरिहन्त को सर्वज्ञ मानते हो और उनके भक्त हो, तो बतलाओ-इस शहर में कितने कौए हैं?" उसका शठतापूर्ण प्रश्न सुन कर जैन श्रमण ने विचार किया कि 'इसको सरलभाव से उत्तर देने से यह नहीं मानेगा। इस धूर्त को धूर्तता पूर्ण उत्तर ही देना चाहिए।' ऐसा सोच कर उसने अपने बुद्धिबल से कहा-"इस शहर में पैंसठ हजार पाँच सौ छत्तीस कौए हैं।" बौद्ध भिक्षु ने कहा"यदि इससे न्यूनाधिक निकले तो?" जैन श्रमण ने उत्तर दिया-"यदि कम हों, तो जानना चाहिए कि यहाँ के कौए बाहर मेहमान होकर गये हुए हैं और यदि अधिक हों, तो जानना चाहिए कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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