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नन्दी सूत्र ..
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लाने के लिए उद्यान की ओर रवाना हुए। राजा के पहुंचने के पहले ही अभयकुमार अपनी माँ के पास लौट आया और उसने उसे सारा वृत्तान्त सुना दिया। राजा के आने का समाचार पाकर नन्दा ने श्रृंगार करना चाहा, किन्तु अभयकुमार ने यह कहकर मना कर दिया कि "माताजी! पति के विरहवाली कुलीन स्त्रियों को अपने पति के दर्शन किये बिना श्रृंगार नहीं करना चाहिए।" थोड़ी देर में राजा भी उद्यान में आ पहुँचा। नन्दा अपने पति के चरणों में गिरी। राजा ने बहुत से आभूषण और वस्त्र देकर उसका सम्मान किया। रानी और अभयकुमार को साथ लेकर बड़ी धूमधाम के साथ राजा अपने महलों में लौट आया। अभयकुमार की विलक्षण बुद्धि को देखकर राजा ने उसे प्रधानमन्त्री के पद पर नियुक्त कर दिया। वह न्याय-नीति पूर्वक राज्य का कार्य चलाने लगा। बाहर खड़े रह कर ही कुएँ से अंगूठी निकाल लेना अभयकुमार की औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
५. वस्त्र चोर की पहिचान
(पट) एक समय दो व्यक्ति किसी तालाब पर जाकर एक साथ स्नान करने लगे। उन्होंने अपने कपड़े उतार कर किनारे पर रख दिये। एक के पास ओढ़ने के लिए अल्प मूल्य वाला मामूली ऊनी कम्बल था और दूसरे के पास ओढ़ने के लिए एक बहुमूल्य रेशमी चादर थी। कम्बल वाला मनुष्य शीघ्रतापूर्वक स्नान करके बाहर निकला और रेशमी चादर लेकर रवाना हो गया। यह देखकर चादर का स्वामी शीघ्रता के साथ पानी से बाहर निकला और पुकार कर कहने लगा-"महाशय! यह चादर तम्हारी नहीं, मेरी है। इसलिए मझे दे दो।" परंत वह उसकी बात पर कुछ भी ध्यान नहीं देता हुआ चला गया। वह दूसरा व्यक्ति उसका पीछा कर रहा था। गाँव में पहुँच कर उसने अपनी चादर मांगी, किंतु वह देने को राजी नहीं हुआ। अन्त में वे अपना न्याय कराने के लिए न्यायालय में पहुंचे। किसी के पास कोई साक्षी नहीं होने से निर्णय होना कठिन समझ कर न्यायाधीश ने अपने बुद्धिबल से काम लिया। उन दोनों के सिर के बालों में कंघी करवाई। इस पर कम्बल के वास्तविक स्वामी के मस्तक से ऊन के तन्तु निकले। इस पर से यह निश्चय हो गया कि 'रेशमी चादर पहले की नहीं है।' उसी समय न्यायाधीश ने वह रेशमी चादर उसके वास्तविक स्वामी को दिलवा दी और दूसरे पुरुष को उचित दण्ड दिया।
कंघी करवा कर ऊन के कम्बल के असली स्वामी का पता लगाने में न्यायाधीश की औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
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