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मति ज्ञान - कूप में से अंगूठी निकालना
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求善事本学生事务等事事事必事李孝孝孝孝孝去事多多多多多多孝子孝事事部主事务学考考未参考手事劳苦李孝孝孝孝子孝率等事事非事事青春市
दोहला उत्पन्न हुआ-'क्या ही अच्छा हो कि मैं श्रेष्ठ हाथी पर सवार होकर याचक लोगों को धन का दान देती हुई अभयदान दूं।' जब दोहले की बात नन्दा के पिता को मालूम हुई, तो उसने राजा की अनुमति लेकर उसका दोहला पूर्ण कर दिया। गर्भकाल पूर्ण होने पर नन्दा की कुक्षि से एक प्रतापी और तेजस्वी बालक का जन्म हआ। दोहले के अनसार बालक का नाम 'अभयकमार' रखा गया। बालक नन्दनं वन के कल्पवृक्ष की तरह सुखपूर्वक बढ़ने लगा। यथा समय विद्याध्ययन कर बालक सुयोग्य बन गया। एक समय अभयकुमार ने अपनी माँ से पूछा-"माँ! मेरे पिताजी का क्या नाम है और वे कहाँ रहते हैं?" माँ ने आदि से लेकर अन्त तक सारा वृत्तान्त कह सुनाया तथा भीत पर लिखा हुआ परिचय भी उसे दिखा दिया। सब देख-सुनकर अभयकुमार ने समझ लिया कि मेरे पिता राजगृह के राजा हैं। उसने अपनी माँ से कहा-"माँ! एक सार्थ (काफला) राजगृह जा रहा है। यदि आपकी इच्छा हो, तो हम भी सार्थ के साथ राजगृह चलें।" माँ की अनुमति होने पर दोनों माँ-बेटे उस सार्थ के साथ राजगृह की ओर रवाना हुए। राजगृह पहुँचकर उसने अपनी माँ को शहर के बाहर एक बाग में ठहरा दिया और आप स्वयं शहर में गया।
शहर में प्रवेश करते ही अभयकुमार ने एक स्थान पर बहुत-से लोगों की भीड़ देखी। निकट जाकर उसने पूछा-"यहाँ पर इतनी भीड़ क्यों इकट्ठी हो रही है?" तब राजपुरुषों ने कहा-"इस जल रहित कुएँ में राजा की अंगूठी गिर गई है। राजा ने यह आदेश दिया है कि जो व्यक्ति बाहर खड़ा रहकर ही इस अंगूठी को निकाल देगा, उसको बहुत बड़ा इनाम दिया जायेगा।" राजपुरुषों की बात सुनकर अभयकुमार ने कहा-"मैं इस अंगूठी को राजा की आज्ञा के अनुसार बाहर निकाल दूंगा।" इतना कहकर अभयकुमार ने पास ही पड़ा हुआ गीला गोबर उठाकर उस अंगूठी पर गिरा . दिया, जिससे वह गोबर में मिल गई। कुछ समय पश्चात् जब गोबर सूख गया, तो उसने कुएँ को पानी से भरवा दिया। इससे गोबर में लिपटी हुई वह अंगूठी भी जल पर तैरने लगी। उसी समय अभयकुमार ने बाहर खड़े रहकर ही अंगूठी निकाल ली और राजपुरुषों को दे दी। राजा के पास जाकर राजपुरुषों ने निवेदन किया-"देव! एक विदेशी युवक ने आपने आदेशानुसार अंगूठी निकाल दी।" राजा ने उस युवक को अपने पास बुलाया और पूछा-"वत्स! तुम्हारा नाम क्या है और तुम किसके पुत्र हो?" युवक ने कहा-"देव! मेरा नाम अभयकुमार है. और मैं आपका ही पुत्र हूँ।" राजा ने आश्चर्य के साथ पूछा-"यह कैसे?" तब अभयकुमार ने पहले का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। यह सुनकर राजा को बहुत हर्ष हुआ और स्नेहपूर्वक उसे अपने हृदय से लगा लिया। इसके बाद राजा ने पूछा-"वत्स! तुम्हारी माता कहाँ है?" अभयकुमार ने कहा-"मेरी माता शहर के बाहर . उद्यान में ठहरी हुई है।" अभयकुमार की बात सुनकर राजा स्वयं उसी समय नन्दा रानी को लिवा
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