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नन्दी सूत्र
के बाद सेठ के यहाँ अधिक बिक्री होने लगी और कई दिनों से खरीद कर रखी हुई पुरानी चीजें बहुत ऊँची कीमत में बिकी। इसके सिवाय रत्नों की परीक्षा न जानने वाले लोगों द्वारा लाये हुए कई बहुमूल्य रत्न भी बहुत थोड़े मूल्य में सेठ को मिल गये । इस प्रकार अचिन्त्य लाभ देख कर सेठ को बड़ी प्रसन्नता हुई। आज अप्रत्याशित लाभ देख कर सेठ इसके कारण पर विचार करने लगा । सोचते हुए उन्हें ख्याल आया कि दुकान पर बैठे हुए इस भाग्यशाली पुरुष के अतिशय पुण्य का ही यह प्रभाव प्रतीत होता है। इसका विस्तीर्ण ललाट और भव्य आकार, इसके पुण्यातिशय की साक्षी दे रहे हैं। मैंने गत रात्रि में अपनी कन्या नन्दा का विवाह रत्नाकर के साथ होने का स्वप्न देखा था । प्रतीत होता है - वह रत्नाकर वास्तव में यही है । इस प्रकार विचार कर वह सेठ श्रेणिक के पास आया और हाथ जोड़कर विनयपूर्वक पूछने लगा - " महाभाग ! आप किसके यहाँ पाहुने पधारे हैं।" श्रेणिक ने जवाब दिया- " अभी तो आप ही के यहाँ आया हूँ।" श्रेणिक का यह उत्तर सुनकर सेठ बहुत प्रसन्न हुआ । आदर और बहुमान के साथ श्रेणिक को वह अपने घर ले गया और आदर के साथ भोजन कराया। अब श्रेणिक वहीं रहने लगा ।
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श्रेणिक के पुण्य प्रताप से सेठ के यहाँ प्रतिदिन धन की वृद्धि होने लगी। कुछ दिन बीतने पर शुभ मुहूर्त में सेठ ने श्रेणिक के साथ अपनी पुत्री नन्दा का विवाह कर दिया। श्रेणिक, नंन्दा के साथ सांसारिक सुख का अनुभव करता हुआ आनन्दपूर्वक रहने लगा। कुछ समय पश्चात् नन्दा गर्भवती हुई। आठवें अच्युत देवलोक से चव कर एक महापुण्यशाली जीव नन्दा के गर्भ में आया । विधिपूर्वक गर्भ का पालन करती हुई, वह सुखपूर्वक समय व्यतीत करने लगी ।
उधर राजा प्रसेनजित, श्रेणिक के चले जाने से बड़े चिंतित रहने लगे। नौकरों को भेजकर उन्होंने इधर-उधर श्रेणिक की बहुत खोज करवाई, किन्तु कहीं भी पता नहीं लगा। अन्त में उसे मालूम हुआ कि श्रेणिक बेनातट नगर में चला गया है। वहाँ किसी सेठ की कन्या से उसका विवाह हो गया है और वह वहीं सुखपूर्वक रहता है।
एक समय राजा प्रसेनजित अचानक बीमार हो गया। अपना अन्तिम समय नजदीक जान कर उसने श्रेणिक को बुलाने के लिए घुड़सवार भेजे। बेनातट पहुँच कर सन्देश वाहक ने श्रेणिक से कहा - " आपके पिता राजा प्रसेनजित बीमार हैं, अतः वे आपको शीघ्र बुलाते हैं।" पिता की आज्ञा को सिरोधार्य करके श्रेणिक ने राजगृह जाने का निश्चय किया। अपनी पत्नी नन्दा को पूछ कर श्रेणिक उन घुड़सवारों के साथ राजगृह को रवाना हुआ। जाते समय अपनी पत्नी की जानकारी के लिए उसने अपना परिचय भींत के भाग पर लिख दिया ।
गर्भ के तीन मास होने पर, गर्भ में आये हुए पुण्यशाली जीव के प्रभाव से, नन्दा को ऐसा
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