SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . नन्दी सूत्र ११४ ******* ************************ ******** सकता?' इस पर ग्रामीण बोला-"किसकी ताकत है जो अकेला इतनी ककड़ियाँ खा लेगा?" नागरिक बोला-"यदि मैं अकेला तुम्हारी इन ककड़ियों को खा जाऊँ, तो तुम मुझे क्या इनाम दोगे?" इस बात को असम्भव मानते हुए ग्रामीण ने कहा-"यदि तुम सब ककड़ियाँ खा जाओ तो मैं तुम्हें ऐसा लड्डु इनाम में दूंगा-जो इस दरवाजे में न आ सके।" दोनों में यह शर्त तय हो गई और उन्होंने कुछ लोगों को साक्षी बना लिया। इसके बाद धूर्त नागरिक ने ग्रामीण की सारी ककड़ियाँ जूंठी करके (थोड़ी थोड़ी खाकर) छोड़ दी और ग्रामीण से कहा कि "मैंने तुम्हारी सारी ककड़ियाँ खा ली हैं, इसलिए शर्त के अनुसार तुम मुझे इनाम दो।" ग्रामीण ने कहा-"तुमने सारी ककड़ियाँ कहाँ खाई. हैं ?" इस पर वह धूर्त नागरिक बोला-"मैंने तुम्हारी सारी ककड़ियाँ खा ली है। यदि तुम्हें विश्वास नहीं हो, तो चलो, इन ककड़ियों को बेचने के लिए बाजार में रखो। ग्राहकों के कहने से तुम्हें अपने आप विश्वास हो जायेगा।" ग्रामीण ने यह बात स्वीकार की और सारी ककड़ियाँ उठा कर बाजार में बेचने के लिए रख दी। थोड़ी देर में ग्राहक आये। ककड़ियां देख कर वे कहने लगे-"ये ककड़ियाँ तो सभी खाई हुई है।" इस तरह ग्राहकों के कहने पर धूर्त ने ग्रामीण को और साक्षियों को. विश्वास उत्पन्न करा दिया। अब ग्रामीण घबराया कि मैं शर्त के अनुसार दरवाजे में न आवे बड़ा लड्डु कहाँ से लाकर दूं? धूर्त से पीछा छुड़ाने के लिए ग्रामीण ने उसको एक रुपया देना चाहा, किन्तु धूर्त कहाँ राजी होने वाला था? आखिर ग्रामीण ने सौ रुपया तक देना स्वीकार कर लिया, किन्तु धूर्त इस पर भी राजी नहीं हुआ। उसे इससे भी अधिक मिलने की आशा थी। आखिर ग्रामीण सोचने लगा-"धूर्त लोग सरलता से नहीं मानते हैं, वे धूर्तता से ही मानते हैं। इसलिए इस विषय में मुझे भी किसी धूर्त की सलाह लेनी चाहिए।" ऐसा सोच कर ग्रामीण ने उस धूर्त से कुछ समय का अवकाश माँगा। शहर में घूम कर उसने किसी धूर्त नागरिक का पता लगाया और उससे मित्रता कर ली। इसके बाद उसने सारी घटना सुनाकर उससे छुटकारा पाने का मार्ग पूछा। धूर्त की सलाह के अनुसार उसने हलवाई की दुकान से एक लड्डु खरीदा और अपने प्रतिपक्षी नागरिक तथा साक्षियों को साथ लेकर वह दरवाजे के पास आया। लड्डु को बाहर रख कर वह दरवाजे के भीतर खड़ा हो गया और लड्डु को सम्बोधित कर कहने लगा-"ओ लड्डु! दरवाजे के भीतर चले आओ, चले आओ।" ग्रामीण के बार-बार कहने पर भी लड्ड अपनी जगह से तिल भर भी नहीं हटा। तब ग्रामीण ने उपस्थित साक्षियों से कहा-"मैंने आप लोगों के सामने यही शर्त की थी कि "मैं ऐसा लड्डु दूंगा जो दरवाजे में न आवे। यह लड्ड भी दरवाजे में नहीं आता है। यदि आप लोगों को विश्वास नहीं हो, तो आप भी इस लड्डु को बुला कर देख सकते हैं। यह लड्डु देकर मैंने अपनी शर्त पूरी कर दी है।" साक्षियों ने तथा उपस्थित अन्य सभी लोगों ने ग्रामीण की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy