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________________ मति ज्ञान - ककड़ियों की शर्त ** * ***** **** ********** *** * *** ***** **** * ******* *** ***** ************** खूब निचोड़ कर सारा पानी निकाल लेता है, उसी प्रकार आप भी दूसरों का सर्वस्व हर लेते हैं। चौथे बिच्छू से, क्योंकि जिस प्रकार बिच्छू निर्दयतापूर्वक डंक मार कर दूसरों को पीड़ा पहुँचाता है, उसी प्रकार सुखपूर्वक निद्रा में सोये हुए मुझ बालक को भी आपने छड़ी के अग्र भाग के स्पर्श से जगा कर कष्ट दिया। पाँचवें अपने पिता से, क्योंकि अपने पिता के समान ही आप भी प्रजा का न्यायपूर्वक पालन कर रहे हैं।" रोहक की उपरोक्त बात सुन कर राजा विचार में पड़ गया। आखिर शौचादि से निवृत्त होकर राजा अपनी माता के पास गया। माता को प्रणाम करके राजा ने एकान्त में अपनी माता से पूछा"माँ! मेरे कितने पिता हैं?" माता ने लज्जित होकर कहा-"पत्र! तम यह क्या प्रश्न कर रहे हो? यह भी कोई पूछने की बात है ? तुम अपने पिता से पैदा हुए हो, तुम्हारे एक ही पिता है।" इस पर राजा ने रोहक की कही हुई सारी बातें कह सुनाई और कहा-"माँ! रोहक का कथन मिथ्या नहीं हो सकता। इसलिए तुम मुझे सच-सच कह दो।" माता ने कहा-"पुत्र! यदि किसी को देखने आदि से मानसिक भाव का विकृत हो जाना ही तेरे संस्कार का कारण हो सकता है, तो रोहक का कथन ठीक है। जब तू गर्भ में था, उस समय मैं वैश्रमण देव की पूजा के लिए गई थी। उसकी सुन्दर मूर्ति को देख कर तथा वापिस लौटते समय रास्ते में सुन्दर चाण्डाल और धोबी युवक को देख कर मेरी भावना विकृत हो गई थी। घर आने पर जब आटे के बिच्छू को मैंने अपने हाथ पर रखा, उस समय भी मेरी भावना विकृत हो गई थी। वैसे जो जगत्प्रसिद्ध पिता ही तुम्हारे वास्तविक पिता है।" यह सुन कर राजा को रोहक की बुद्धि पर आश्चर्य हुआ। माता को प्रणाम करके वह अपने महल में लौट आया। रोहक की ऐसी तीव्र एवं औत्पत्तिकी बुद्धि देख कर राजा ने उसको प्रधानमन्त्री के पद पर नियुक्त कर दिया। ककी बद्धि का यह पन्द्रहवाँ उदाहरण है। ये पन्द्रह उदाहरण रोहक की औत्पत्तिकी बद्धि के हैं। ये सब औत्पत्तिकी बुद्धि के प्रथम उदाहरण के अन्तर्गत हैं। यहाँ प्रथम उदाहरण पूर्ण हुआ। : अब आगे औत्पत्तिकी बुद्धि का दूसरा उदाहरण दिया जाता है। २. ककड़ियों की शर्त रोहक (पणित) एक समय कोई ग्रामीण किसान अपने गांव से ककड़ियाँ लेकर बेचने के लिए शहर में आया। शहर के दरवाजे पर पहुँचते ही उसे एक धूर्त नागरिक मिला। उसने ग्रामीण को भोला समझ कर ठगने की इच्छा से कहा कि- क्या एक आदमी इन सब ककड़ियों को नहीं खा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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