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________________ ११२ नन्दी सूत्र जागता है?" रोहक ने फिर जग कर कहा-"स्वामिन् ! जागता हूँ।" राजा ने पूछा-"तो क्या सोच रहा है?" रोहक ने जवाब दिया-"मैं यह सोच रहा हूँ कि पीपल के पत्ते का पिछला दण्ड बड़ा होता है या शिखा (आगे का भाग)?" रोहक का कथन सुन कर राजा भी विचार करने लगा। उसने पूछा-"रोहक! तुम्ही बताओ। तुमने इस विषय में सोच कर क्या निर्णय किया है?".रोहक ने कहा-"महाराज! जब तक अगला भाग (शिखा भाग) नहीं सूखता है, तब तक तो दोनों बराबर होते हैं, किंतु शिखा भाग सूख जाने पर दण्ड भाग बड़ा रह जाता है।" इस पर राजा ने दूसरे लोगों से पूछा, तो उन सभी ने रोहक की बात का समर्थन किया। रोहक वापिस सो गया। . १४. गिलहरी की पूँछ ... . रात का तीसरा पहर बीत जाने पर राजा ने फिर पूछा-"रोहक! सोता है या जागता है?" .. रोहक ने फिर जागकर जवाब दिया-"स्वामिन् ! जागता हूँ।" राजा ने पूछा-"तो बता, क्या सोच रहा है?" रोहक ने कहा-"मैं यह सोच रहा हूँ कि गिलहरी का शरीर जितना बड़ा होता है, उसकी पूँछ भी उतनी ही बड़ी होती है या कम-ज्यादा?" रोहक की बात सुन कर राजा स्वयं सोचने लगा, किन्तु जब वह कुछ निर्णय नहीं कर सका, तब उसने रोहक से पूछा-"तुम बताओ, तुमने क्या निर्णय किया है?" रोहक ने कहा-"स्वामिन्! गिलहरी का शरीर और पूँछ दोनों ही बराबर होते हैं।" १५. पाँच पिता ___ रात बीत जाने पर प्रात:काल के मंगलकारी वाद्यों का शब्द सुन कर राजा जाग्रत हुआ। उसने रोहक को आवाज दी, किन्तु वह गहरी नींद में सोया हुआ था। तब राजा ने अपनी छड़ी से उसके शरीर को स्पर्श किया जिससे वह एकदम जागा। राजा ने कहा-"रे रोहक! क्या सोता है?" रोहक ने कहा-"नहीं, मैं तो जागता हूँ।" राजा ने कहा-"फिर आवाज देने पर बोला क्यों नहीं?" रोहक ने कहा-"मैं गम्भीर विचार में तल्लीन था।" राजा ने पूछा-"किस बात पर गम्भीर विचार कर रहा था?" रोहक ने कहा-"मैं इस विचार में लगा हुआ था कि आपके कितने पिता है, यानी आप कितनों से पैदा हुए हैं ?" रोहक की बात सुन कर राजा विस्मित हुआ। थोड़ी देर चुप रह कर राजा ने उससे पूछा-"अच्छा तो बतला, मैं कितने पिता का पुत्र हूँ?" रोहक ने कहा-"आप पाँच के पुत्र हैं।" राजा ने पूछा-"कौन हैं, वे पाँच?" रोहक ने कहा-"एक तो वैश्रवण (कुबेर) से, क्योंकि आप में कुबेर के समान ही दान-शक्ति है। दूसरे चाण्डाल से, क्योंकि शत्रुओं के लिए आप चाण्डाल के समान ही क्रूर है। तीसरे धोबी से, क्योंकि जैसे धोबी गीले कपड़े को जोर से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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