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________________ **** ******** मति ज्ञान पीपल का पान - ११. रोहक का उज्जयिनी आगमन रोहक ने अपनी तीव्र ( औत्पत्तिकी) बुद्धि से राजा की सभी आज्ञाओं को पूरा कर दिया । इससे राजा बहुत खुश हुआ। राजपुरुषों को भेंज कर राजा ने रोहक को अपने पास बुलाया। साथही यह आज्ञा दी कि - " रोहक १. न स्नान करके, न बिना स्नान किये आवे २. न तो शुक्लपक्ष में आवे, न कृष्णपक्ष में ३. न रात्रि में आवे, न दिन में ४. न धूप में आवे, न छाया में ५. न आकाश से आवे, न पैदल चल कर ६. न मार्ग से आवे न उन्मार्ग से, किन्तु आवे जरूर । " राजा की उपरोक्त आज्ञा को सुनकर रोहक ने १. कण्ठ तक स्नान किया, फिर २. अमावस्या और प्रतिपदा के संयोग में, ३. सन्ध्या के समय, ४. सिर पर चालनी का छत्र धारण करके, ५. मेढ़े पर बैठ कर, ६. गाड़ी के पहिये के बीच के मार्ग से राजा के पास जाने लगा। रोहक ने यह लोकोक्ति सुन रखी थी कि Jain Education International १११ ***** "रिक्त हस्तो न पश्येच्च राजानें देवता गुरुम् । " अर्थात्-राजा, देवता और गुरु का दर्शन खाली हाथ नहीं करना चाहिए । इस लोकोक्ति का विचार करके रोहक ने एक मिट्टी का ढेला हाथ में ले लिया। राजा के पास पहुँच कर उसने राजा को विनयपूर्वक प्रणाम किया और उसके सामने मिट्टी का ढेला रख दिया। राजा ने रोहक से पूछा" यह क्या है?" रोहक ने कहा- "देव ! आप पृथ्वीपति है, इसलिए मैं पृथ्वी लाया हूँ।" प्रथम दर्शन में यह मंगल वचन सुन कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ । रोहक के साथ आये हुए गाँव के लोग भी बहुत खुश हुए। राजा ने रोहक को वहीं रख लिया और गाँव के लोग वापिस घर लौट गये । १२. बकरी की मैंगनी राजा ने प्रसन्न होकर रोहक को अपने पास ही सुलाया। रात का पहला पहर बीत जाने पर राजा ने भर नींद में सोये रोहक को आवाज दी- "रे रोहक ! जागता है, या सोता है ?" रोहक ने जग कर जवाब दिया- "महाराज ! जागता हूँ।" राजा ने पूछा - " तो बतला, क्या सोच रहा है ?" रोहक ने जवाब दिया- "देव! मैं इस बात पर विचार कर रहा हूँ कि बकरी के पेट में मिगनियाँ गोल-गोल कैसे बनती है ?" रोहक की बात सुनकर राजा भी विचार में पड़ गया। उसने रोहक से पूछा - "अच्छा, तुम्हीं बताओ ये कैसे बनती है ?" रोहक ने जवाब दिया- "देव! बकरी के पेट में संवर्तक नाम की वायु होती है, उसी से ऐसी गोल-गोल मिगनियाँ बन कर गिरती है।" यह कह कर रोहक सो गया। १३. पीपल का पान रात के दो पहर बीत जाने पर राजा ने रोहक को फिर आवाज दी- "रोहक ! सोता है या For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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