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मति ज्ञान ***************************************************************
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१. श्रुतज्ञान में वाच्य पदार्थ और वाचक शब्द के परस्पर सम्बन्ध का ज्ञान नियम से और मुख्य रूप से रहता है तथा शब्द उल्लेख भी नियम से होता है।
२. परन्तु मतिज्ञान में जो रूपी अरूपी ज्ञान होता है, उसका अनंत गुण भाग ऐसा है, जिसका वाचक शब्द, लोक में होता ही नहीं, वह मात्र स्वसंवेदन गम्य होता है। अतएव उसमें तो वाच्य वाचक सम्बन्ध की पर्यालोचना हो ही नहीं सकती।
. शेष रूपी अरूपी पदार्थ का अनन्तवाँ भाग ज्ञान जो ऐसा है, जिसमें वाच्य वाचक संबंध सम्भव है। परन्तु मतिज्ञान द्वारा उसमें वाच्य अर्थ या वाचक शब्द का ज्ञान मुख्य होता है, शब्दार्थगत परस्पर वाच्य-वाचक के सम्बन्ध की पर्यालोचना बहुत गौण होती है।
इसी प्रकार शब्द उल्लेख भी मतिज्ञान में अनिवार्य नहीं है। यह मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में अन्तर है।
शंका - जब श्रुतज्ञान, श्रोत्रइन्द्रिय के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियों से भी संभव है, तब श्रुतज्ञान में सुनने की और श्रोत्र इन्द्रिय की मुख्यता क्यों हैं ?
समाधान - यद्यपि श्रुतज्ञान अन्य सभी इन्द्रियों से संभव है, पर सुनना और श्रोत्रेन्द्रिय, ये दोनों श्रुतज्ञान की उत्पत्ति में प्रमुख कारण है। अतएव इसको मुख्यता दी गई है।
शंका - क्या एकेन्द्रियों में भी श्रुतज्ञान (अज्ञान) होता है ? हां, तो किस रूप में?
समाधान - हाँ, वह आहार संज्ञा आदि के समय होता है, पर वह अत्यन्त मन्द रूप होता है-मन्द ईहा अवाय के समान । अतएव वह शब्द द्वारा प्रकट करना कठिन है। . .. १. पहले जीव, वाचक शब्द को ग्रहण करता है या वाच्य पदार्थ को ग्रहण करता है। फिर उन दोनों में जो वाच्य वाचक संबंध है, उसकी पर्यालोचना पूर्वक शब्द व अर्थ को जानता है। परन्तु वाच्य पदार्थ या वाचक शब्द को ग्रहण किये बिना वाच्य वाचक संबंध, पर्यालोचनापूर्वक शब्द व अर्थ को नहीं जानता। वाच्य पदार्थ या वाचक शब्द को ग्रहण करना-मतिज्ञान है और वाच्य वाचक सम्बन्ध पर्यालोचना पूर्वक शब्द व अर्थ को जानना-श्रुतज्ञान है।
इस प्रकार श्रुतज्ञान होने के लिए पहले मतिज्ञान का होना अनिवार्य है। अतएव मतिज्ञान, श्रुतज्ञान का कारण है, परन्तु मतिज्ञान होने के लिए, पहले श्रुतज्ञान का होना अनिवार्य नहीं है। अतएव श्रुतज्ञान, मतिज्ञान का कारण नहीं है।
२. अथवा यदि किसी को श्रुतज्ञान तीव्र करना है, तो उसका प्रायः मतिज्ञान तीव्र होना आवश्यक है। यदि उसका मतिज्ञान तीव्र नहीं हुआ, तो प्रायः उसका श्रुतज्ञान मन्द रहेगा।'
इस प्रकार श्रुतज्ञान की तीव्रता मन्दता में मतिज्ञान की तीव्रता मन्दता सहायक है। अतएव
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