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- ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र scccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx
“उप्पन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा।"
प्रस्तुत सूत्र में पुद्गलों को परिणमनशील कहा गया है, वह पर्यायार्थिकनय की दृष्टि से समझना चाहिये।
प्रश्न हो सकता है कि जब सभी पदार्थ-द्रव्य परिणमनशील हैं तो यहाँ विशेष रूप से पुद्गलों का ही उल्लेख क्यों किया गया है? इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है - परिणमन तो सभी में होता है किन्तु अन्य द्रव्यों के परिणमन से पुद्गल के परिणमन में कुछ विशिष्टता है। पुद्गल द्रव्य के प्रदेशों में संयोग-वियोग होता है, अर्थात् पुद्गल का एक स्कन्ध (पिंड) टूटकर दो भागों में विभक्त हो जाता है, दो पिण्ड मिलकर एक पिण्ड बन जाता है, पिण्डं में से एक परमाणु-उसका निरंश अंश पृथक् हो सकता है। वह कभी-कभी पिण्ड में मिलकर स्कन्ध रूप धारण कर सकता है। इस प्रकार पुद्गल द्रव्य के प्रदेशों में हीनाधिकता, मिलना-बिछुड़ना होता रहता है। किन्तु पुद्गल के सिवाय शेष द्रव्यों में इस प्रकार का परिणमन नहीं होता। जीव, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि के प्रदेशों में न न्यूनाधिकता होती है, न संयोग या वियोग होता है। उनके प्रदेश जितने हैं, उतने ही सदा काल अवस्थित रहते हैं। अन्य द्रव्यों के परिणमन . से पुद्गल के परिणमन की इसी विशिष्टता के कारण संभवतः यहाँ पुद्गलों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया। ___ दूसरा कारण यह हो सकता है कि प्रस्तुत सूत्र में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के संबन्ध में कथन किया गया है और ये चारों गुण केवल पुद्गल में ही होते हैं, अन्य द्रव्यों में नहीं।
यहाँ एक तथ्य और ध्यान में रखने योग्य है। वह यह कि प्रत्येक द्रव्य का गुण भी द्रव्य की ही तरह नित्य अविनाशी है, परन्तु उन गुणों के पर्याय, द्रव्य के पर्यायों की भांति परिणमनशील हैं। वर्ण पुद्गल का गुण है। उसका कभी विनाश नहीं होता। काला, पीला, लाल, नीला और श्वेत, वर्ण-गुण के पर्याय हैं। इनमें परिवर्तन होता रहता है। गंध गुण स्थायी है, सुगन्ध और दुर्गन्ध उसके पर्याय हैं। अतएव गंध नित्य और उसके पर्याय अनित्य हैं। इसी प्रकार रस और स्पर्श के संबन्ध में समझ लेना चाहिए। ___ परिणमन की यह धारा निरन्तर, क्षण-क्षण, पल-पल, प्रत्येक समय, प्रवाहित होती रहती है, किन्तु सूक्ष्म परिणमन हमारी दृष्टि में नहीं आता। जब परिणमन स्थूल होता है तभी हम उसे जान पाते हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे कोई शिशु पल-पल में वृद्धिंगत होता रहता है किन्तु उसकी वृद्धि का अनुभव हमें तभी होता है जब वह स्थूल रूप धारण करता है।
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