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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र KaCcccccccccccccccccccccccccccccccccccccccepack . . सुबुद्धि ने राजा जितशत्रु के इस कथन का न तो आदर ही किया न उत्तर ही दिया, चुपचाप बैठा रहा।
पुद्गलों की परिणमनशीलता
(८)
तए णं जियसत्तू सुबुद्धिं दोच्वंपि तच्चंपि एवं वयासी-अहो णं सुबुद्धी! इमे मणुण्णे तं चेव जाव पल्हायणिजे। तए णं (जियसत्तुणा) से सुबुद्धी अमच्चे दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्ते समाणे जियसत्तुं रायं एवं वयासी-णो खलु सामी! अहं एयंसि मणुण्णंसि असणंसि ४ केइ विम्हए। एवं खलु सामी! सुन्भिसद्दा वि पोग्गला दुन्भिसद्दत्ताए परिणमंति दुन्भिसद्दा वि पोग्गला सुन्भिसद्दत्ताए परिणमंति। सुरूवा वि पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति दुरूवा वि पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति। सुब्भिगंधा वि पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति दुन्भिगंधा वि पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति। सुरसा वि पोग्गला दुरसत्ताए परिणमंति। दुरसा वि पोग्गला सुरसत्ताए परिणमंति। सुहफासा वि पोग्गला दुहफासत्ताए परिणमंति दुहफासा वि पोग्गला सुहफासत्ताए परिणमंति। पओगवीससापरिणया वि य णं सामी! पोग्गला पण्णत्ता।
शब्दार्थ - सुब्भिसहा - प्रशस्त शब्द युक्त, दुब्भिसहा - अप्रशस्त शब्द युक्त, पओगवीससा-परिणया - प्रयोग तथा स्वभाव से परिणत। ....
___ भावार्थ - राजा जितशत्रु ने सुबुद्धि से दूसरी बार-तीसरी बार कहा - सुबुद्धि! क्या ये मनोज्ञ अशन-पानादि चतुर्विध आहार अत्यंत स्वादनीय यावत् आह्लादप्रद नहीं है? - जितशत्रु द्वारा दो-तीन बार यों कहे जाने पर सुबुद्धि बोला-स्वामी! इन मनोज्ञ अशन-पान आदि में क्या विस्मय है?
स्वामी! यह स्पष्ट है, शुभ शब्द पुद्गल अशुभ शब्द पुद्गलों के रूप में तथा अशुभ शब्द पुद्गल शुभ शब्द पुद्गलों में परिणत हो जाते हैं। सुंदर रूप पुद्गल कुत्सित रूप मय पुद्गलों में तथा कुत्सित रूपमय पुद्गल सुंदर रूपमय पुद्गलों में परिणत हो जाते हैं। सुगंध युक्त पुद्गल
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