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उदकज्ञात नामक बारहवां अध्ययन - पुद्गलों की परिणमनशीलता SOOGGERIENCEICCHECKICRORSEEIGGoocccccccccccccEOGGECEER दुर्गन्ध युक्त पुद्गलों में तथा दुर्गन्ध युक्त पुद्गल सुगंधमय पुद्गलों में परिणत हो जाते हैं। शुभ रस युक्त पुद्गल. अशुभ रस युक्त पुद्गलों में तथा अशुभ रस युक्त पुद्गल शुभ रस युक्त पुद्गलों में परिणत हो जाते हैं। उसी प्रकार सुख स्पर्श युक्त पुद्गल दुःख स्पर्श युक्त पुद्गलों में तथा दुःख स्पर्शयुक्त पुद्गल सुख स्पर्श युक्त पुद्गलों में परिणत हो जाते हैं।
स्वामी! पुद्गलों का यह परिणमन प्रयोग से और स्वभाव से-दोनों प्रकार से हो जाता है।
- तए णं से जियसत्तू सुबुद्धिस्स अमच्चस्स एवमाइक्खमाणस्स ४ एयमढे णो आढाइ णो परियाणइ तुसिणीए संचिट्ठइ।
भावार्थ - सुबुद्धि द्वारा कही गई इस बात का राजा ने आदर नहीं किया, गौर नहीं किया, वह चुपचाप रहा।
विवेचन - इन सूत्रों में जो कुछ कहा गया है वह सामान्य-सी बात प्रतीत होती है, किन्तु गंभीरता में उतर कर विचार करने पर ज्ञात होगा कि इस निरूपण में एक अति महत्त्वपूर्ण तथ्य निहित है। सुबुद्धि अमात्य सम्यग्दृष्टि, तत्त्व का ज्ञाता और श्रावक था, अतएव सामान्यजनों की दृष्टि से उसकी दृष्टि भिन्न थी। वह किसी भी वस्तु को केवल चर्म-चक्षुओं से नहीं वरन् विवेक-दृष्टि से देखता था। उसकी विचारणा तात्त्विक, पारमार्थिक और समीचीन थी। यही कारण है कि उसका विचार राजा जितशत्रु के विचार से भिन्न रहा। सम्यग्दृष्टि के योग्य निर्भीकता भी उसमें थी, अतएव उसने अपनी विचारणा का कारण भी राजा को कह दिया। इस प्रकार इस प्रसंग से सम्यग्दृष्टि और उससे इतर जनों के दृष्टिकोण का अन्तर समझा जा सकता है। सम्यग्दृष्टि आत्मा भोजन, पान, परिधान आदि साधनभूत पदार्थों के वास्तविक स्वरूप का ज्ञाता होता है। उसमें रागद्वेष की न्यूनता होती है, अतएव वह समभावी होता है। किसी वस्तु के उपभोग से न तो चकित विस्मित होता है और न पीड़ा, दुःख या द्वेष का अनुभव करता है। वह यथार्थ वस्तुस्वरूप को जान कर अपने स्वभाव में स्थिर रहता है। सम्यग्दृष्टि जीव की यह व्यावहारिक कसौटी है।
(१०) तए णं से जियसत्तू अण्णया कयाइ ण्हाए आसखंधवरगए महयाभडचडगरह
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