________________
१६
xxxxxxxxxx
OOOOOOR
उव्विग्गा (वा) उस्सुया ( वा उप्पुया वा) भवेज्जाह तओ तुब्भे जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छेज्जाह ममं पडिवालेमाणा २ चिट्ठेज्जाह । मा णं तुब्भे दक्खिणिल्लं वणसंडं गच्छेज्जाह । तत्थ णं महं एगे उग्गविसे चंडविसे घोरविसे अइकाय महाकाए जहा तेयणिसग्गे मसिमहिसमूसाकालए णयण विसरोसपुण्णे अंजण पुंजणियरप्पगासे रत्तच्छे जमलजुयल चंचलचलंत जीहे धरणियल वेणिभूए उक्कडफुडकुडिल जड़िल कक्खडवियडफडाडोवकरणदच्छे लोगाहार धम्ममाणधमधमेंत घोसे अणागलिय चंडतिव्वरोसे समुहितुरियं चवलं धमधमंत दिट्ठी विसे सप्पे य परिवस । मा णं तुब्भं सरीरगस्स वावत्ती भविस्सइ । .
शब्दार्थ - वेणिभूए - वेणीभूत - केशपाश के सदृश, उक्कड उत्कट - अत्यधिक शक्तिमान, फुड स्फुट - प्रकट, कुडिल - कुटिल, जडिल - जटा - सिंह के अयाल जैसे बालों से युक्त, वियड - विकट, फडाडोव फण को फैलाने में दक्ष, अणागलिय- अनाकलित - अपरिमित, समुहिं- कुत्ते के भौंकने के तुल्य, वावत्ती - विशेष संकट ।
भावार्थ - तुम वहाँ अनेक वापी, तड़ाग आदि में मनोरंजन करते रहना । यदि तुम्हारा वहाँ मन न लगे तथा और मनोरंजन की आवश्यकता हो तो तुम मेरे उत्तम प्रासाद में आ जाना, मेरी प्रतीक्षा करते रहना, दक्षिणी ओर के वनखंड में मत जाना। वहाँ एक उग्र, प्रचण्ड घोर महा विष युक्त विशालकाय साँप रहता है। उसका विस्तृत वर्णन इस प्रकार हैं -
वह कज्जल, भैंसा, कसौटी के पत्थर के समान काला है। इसकी दोनों आँखें विष से भरी है। अंजन - राशि के समान यह कृष्ण आभा युक्त है। उसकी दोनों जिह्वाएँ चंचल हैं, बारबार बाहर निकलती रहती हैं। अत्यंत काला होने से ऐसा लगता है मानो पृथ्वी रूपी नारी की काला केशपाश हो। वह बड़ा ही भयंकर, कुटिल, कर्कश और फण करने में दक्ष हैं। सिंह के अयाल के समान उसके बाल निकले हुए हैं। लुहार की धौंकनी के सदृश उसका घोष है। वह अपरिमित, प्रचण्ड, तीव्र रोष युक्त है। जल्दी-जल्दी, चपलता पूर्वक भौंकने - गुर्राने वाले कुत्ते की तरह इसकी फुंकार की गुरगुराहट है। उसकी दृष्टि में सदा विष जाज्वल्यमान रहता है। ऐसा साँप उस वनखंड में निवास करता है। इसलिए तुम दोनों वहाँ मत जाना, अन्यथा तुम संकट में पड़ जाओगे ।
Jain Education International
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
*******
-
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org