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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - माकंदी पुत्रों द्वारा तीन वन-खंडों में मनोरंजन १७ FECEOCEREDERIERIEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEcooks
(२७) ते मागंदियदारए दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयइ २ त्ता वेउब्विय समुग्याएणं समोहण्णइ २ ता ताए उक्किट्ठाए लवण समुदं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टेउं पयत्ता यावि होत्था। __ भावार्थ - उसने माकंदी पुत्रों को दूसरी बार, तीसरी बार यह बात कही, समझाई। ऐसा कर उसने वैक्रिय समुद्घात से विकुर्वणा की एवं उत्कृष्ट देवगति से लवण समुद्र का इक्कीस बार अनुपर्यटन करने में प्रवृत्त हो गई। माकंदी पुत्रों द्वारा तीन वन-खंडों में मनोरंजन
(२८) तए णं ते मागंदियदारया तओ मुहुत्तंतरस्स पासायवडेंसए सई वा रइं वा धिई वा अलभमाणा अण्णमण्णं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! रयणदीवदेवया अम्हे एवं वयासी - एवं खलु अहं सक्कवयणसंदेसेणं सुट्टिएणं लवणाहिवइणा जाव वावत्ती भविस्सइ। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! पुरथिमिल्ले वणसंडं गमित्तए अण्णमण्णस्स एयमढें पडिसुणेति २ त्ता जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता तत्थ णं वावीसु य जाव आलीघरएसु य जाव विहरति । · शब्दार्थ - सई - स्मृति, रई - रति-आलाद्, धिई - धृति-स्थिरता।
भावार्थ - देवी के चले जाने पर माकंदी पुत्र उस सुंदर प्रासाद में मुहूर्त्तभर में ऊब गए। उसमें उन्हें न कोई रहने में आनंद आया और न उनका वहाँ मन ही टिका। अतः वे आपस में विचार करने लगे - देवानुप्रिय! रत्नद्वीप देवी ने हमें यह कहा कि शक्रेन्द्र के आदेश से लवण समुद्र के अधिपति सुस्थित देव ने मुझे लवण समुद्र की सफाई का काम सौंपा है यावत् तुम दक्षिणी वनखंड में मत जाना। वहाँ तुम्हारे प्राण संकट में पड़ जाएंगे। इसलिए देवानुप्रिय! हमारे लिए यही श्रेयस्कर है, हम पूर्व दिशावर्ती वनखंड में जाएँ। यों परस्पर विचार कर उन्होंने ऐसा
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