SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय वर्ग 00000 - - प्रथम अध्ययन Jain Education International द्वितीय वर्ग सूत्र - १ जइ णं भंते! समणेणं० दोच्चस्स वग्गस्स उक्खेवओ । भावार्थ - आर्य जंबू ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा - भगवन्! श्रमण यावत् सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम वर्ग का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है तो कृपया बतलाएं दूसरे वर्ग का क्या अर्थ बतलाया है ? इस प्रकार यह द्वितीय वर्ग का उत्क्षेप-उपोद्घात है। ३३५ सूत्र - २ एवं खलु जंबू! समणेणं० दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहासुंभा णिसुंभा रंभा णिरंभा मदणा । भावार्थ आर्य सुधर्मा स्वामी बोले- हे जंबू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने द्वितीय वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं - शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा तथा मदना । प्रथम अध्ययन सूत्र - ३ जइ णं भंते! समणेणं० धम्मकहाणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? 900009Oex भावार्थ - भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने धर्मकथा के द्वितीय वर्ग के पांच अध्ययन बतलाए हैं तो कृपया कहें, उन्होंने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञापित किया है। सूत्र - ४ एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए सामी समोसढे परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ । भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी बोले - जंबू ! उस काल, उस समय राजगृह नगर में गुणशील नामक चैत्य था । प्रभु महावीर स्वामी वहाँ समवसृत हुए। जनसमूह वंदन, नमन हेतु आया । यावत् धर्मोपदेश सुना, पर्युपासना की । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy