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________________ ३३६ - ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපද सूत्र-५ तेणं कालेणं तेणं समएणं सुंभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए सुंभवडेंसए भवणे सुंभंसि सीहासणंसि कालीगमएणं जाव णट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगया। भावार्थ - उस काल, उस समय शुंभा नामक देवी, बलिचंचा राजधानी में शुभावतंसक भवन में, शुभ संज्ञक आसन पर समासीन थी। शेष सारा वर्णन काली देवी के वृत्तांत सदृश है यावत् उसने भगवान् के समक्ष बहुविध नाटकों का प्रदर्शन किया और वापस लौट गई। सूत्र-६ पुव्वभवपुच्छा। सावत्थी णयरी कोट्ठए चेइए जियसत्तू राया सुंभे गाहावई सुंभसिरी भारिया सुंभा दारिया सेसं जहा कालिए णवरं अद्भुट्ठाई पलिओवमाई ठिई। एवं खलु जंबू! णिक्खेवओ अज्झयणस्स। भावार्थ - गौतम स्वामी ने शुंभा देवी के पूर्व भव के संबंध में प्रश्न किया। प्रभु महावीर स्वामी ने बतलाया - उस काल, उस समय श्रावस्ती नामक नगरी थी। वहाँ कोष्ठक नाम उद्यान था। राजा का नाम जितशत्रु था। वहाँ शुंभ नामक गाथापति रहता था। इसकी पत्नी का नाम शुभश्री था। इनके शुंभा नामक पुत्री थी। शेष वर्णन काली देवी की भांति योजनीय है। अंतर यह है कि देवलोक में उसकी स्थिति साढ़े तीन पल्योपम कही गई है। ___ आर्य सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! दूसरे वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह निक्षेप-सारसंक्षेप है। विवेचन - दूसरे वर्ग के पांचों अध्ययनों वाली देवियों की स्थिति का खुलासा प्रथम वर्ग की देवियों की स्थिति के खुलासे के साथ (सूत्र संख्या ३३ के विवेचन में) बता दिया गया है। अतः जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए। ॥ प्रथम अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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