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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපප चिलात द्वारा सुंसुमा का शिरच्छेद
(३०) तए णं से चिलाए तं धण्णं सत्थवाहं पंचहिं पुत्तेहिं (सद्धिं) अप्पछठें सण्णद्धबद्धं समणुगच्छमाणं पासइ २त्ता अत्थामे ४ जाहे णो संचाएइ सुंसुमं दारियं णिव्वाहित्तए ताहे संते तंते परितंते णीलुप्पलं असिं परामुसइ २ त्ता सुंसुमाए दारियाए उत्तमंगं छिंदइ २ त्ता तं गहाय तं अगामियं अडविं अणुप्पविढे। ..
भावार्थ - चिलात ने कवच आदि से सन्नद्ध धन्य सार्थवाह को अपने पाँचों पुत्रों के साथ पीछा करते हुए देखा तो वह अस्थिर, बलरहित, पराक्रमशून्य एवं शक्तिरहित हो गया
और उसे जब लगा कि श्रेष्ठि कन्या सुंसुमा को ले जा नहीं सकेगा तो उसने अत्यंत श्रांत, ग्लान एवं खिन्न होकर नीले कमल जैसी तीक्ष्ण तलवार को म्यान से निकाला और सार्थवाह कन्या का मस्तक काट डाला। कटे हुए मस्तक को लेकर वह अगम्य वन में प्रविष्ट हो गया।
(३१) तए णं (से) चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाए (छुहाए) अभिभूए समाणे पम्ह(ह)ट्ठदिसाभाए सीहगुहं चोरपल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव कालगए।
शब्दार्थ - तण्हाए - प्यास।
भावार्थ - चिलात को उस दुर्गम घोर वन में बड़ी प्यास लगी। वह आकुल हो उठा। उसे दिशाओं का ज्ञान नहीं रहा। वह अपनी सिंहगुफा नामक चोरपल्ली तक नहीं पहुँच सका, मार्ग में ही मर गया।
(३२) एवामेव समणाउसो! जाव पव्वइए समाणे इमस्स ओरालिय सरीरस्स वंतासवस्स जाव विद्धंसणधम्मस्स वण्णहेउं जावं आहारं आहारेइ से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं ४ हीलणिज्जे जाव अणुपरियट्टिस्सइ जहा व से चिलाए तक्करे।
शब्दार्थ - वंतासवस्स - वमन आदि अशुचि पदार्थों का स्त्रोत रूप, विद्धंसणधम्मस्सस्वभावतः विनश्वर, वण्णहेउं - कांति, सुंदरता आदि हेतु।
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