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________________ सुंसुमा नामक अट्ठारहवां अध्ययन - धन्य शोक-निमग्न २८६ Soccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccsex भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमणो! यावत् जो साधु-साध्वी प्रव्रजित होकर वमन आदि अशुचि पदार्थों के निर्झर इस औदारिक यावत् विनश्वर शरीर की कांति, सुंदरता बढ़ाने हेतु यावत् आहार करते हैं, वे इस लोक में बहुत से साधु-साध्वियों और श्रावक-श्राविकाओं द्वारा अवहेलना योग्य होते हैं यावत् वे इस संसार में पर्यटन करते रहते हैं। उनकी वैसी ही दशा होती है, जैसी चिलात तस्कर की हुई। धन्य शोक-निमग्न (३३) तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्टे चिलायं (तीसे अगामियाए सव्वओ समंता) परिधाडेमाणे २ (तण्हाए छुहाए य) संते तंते परितंते णो संचाएइ चिलायं चोर सेणावई साहत्थिं गिण्हित्तए। से णं तओ पडिणियत्तइ २ त्ता जेणेव सा सुंसुमा दारिया चिलाएणं जीवियाओ ववरोवि(ल्लि)या तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सुंसुमं दारियं चिलाएणं जीवियाओ ववरोवियं पासइ २ त्ता परसुणियत्तेव्व चंपगपायवे। शब्दार्थ-परिधाडेमाणे - पीछा करता हुआ, परसु-णियत्तेव्व - कुल्हाड़े द्वारा काटे गए। भावार्थ - धन्य सार्थवाह अपने पांचों पुत्रों के साथ चिलात का पीछा करते-करते प्यास और भूख से परिश्रांत, खिन्न और उत्साहहीन हो गया। वह चोर सेनापति चिलात को अपने हाथ से पकड़ने में असमर्थ रहा। वापस लौट पड़ा और चिलात द्वारा जहाँ सुसुमा मारी गई थी, वहाँ पहुँचा। सुंसुमा को प्राण रहित देखकर वह उसी तरह गिर पड़ा, जिस प्रकार कुठार द्वारा काटा गया चंपक वृक्ष गिर पड़ता है। (३४) तए णं से धण्णे सत्थवाहे (पंचहिं पु०) अप्पछडे आसत्थे कूवमाणे कंदमाणे विलवमाणे महया २ सद्देणं कुहुकुहुस्सपरुण्णे सुचिरं कालं बाह(प्प)मोक्खं करेइ। शब्दार्थ - कूवमाणे - कूकता हुआ-दुःखपूर्ण स्वर में रुदन करता हुआ, कुहुकुहुस्सपरुण्णेसिसकियाँ भरता हुआ, बाहमोक्खं - अश्रुपात। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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