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सुंसुमा नामक अट्ठारहवां अध्ययन - पुत्रों सहित धन्य सार्थवाह द्वारा पीछा
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णं ते पंच-चोरसया णगरगुत्तिएहिं हयमहिय जाव पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धणकणगं विच्छड्ढे (डे)माणा य विप्पकिरेमाणा य सव्वओ समंता विप्पलाइत्था। तए णं ते णगरगुत्तिया तं विपुलं धणकणगं गेण्हंति २ त्ता जेणेव रायगिहे तेणेव उवागच्छति।
शब्दार्थ - विच्छड्डेमाणा - छोड़ते हुए। .
भावार्थ - नगर रक्षकों ने चोर सेनापति चिलात को हत, मथित यावत् पराभूत कर डाला। तब नगर रक्षकों द्वारा यों हत, मथित यावत् पराजित हुए वे पाँच सौ चोर विपुल धन, संपत्ति को वहीं छोड़, इधर-उधर फेंकते हुए, चारों ओर भाग छूटे। तब नगर रक्षकों ने धन आदि विशाल संपत्ति को अपने कब्जे में किया और राजगृह नगर की ओर चल पड़े। पुत्रों सहित धन्य सार्थवाह द्वारा पीछा
(२६) तए णं से चिलाए तं चोरसेण्णं तेहिं णगरगुत्तिएहिं हयमहिय जाव भीए तत्थे सुसुमं दारियं गहाय एगं महं अगामियं दीहमद्धं अडविं अणुप्पविठे। तए णं धण्णे सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडवीमु(हि)हं अवहीरमाणिं पासित्ताणं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्टे सण्णद्धबद्ध० चिलायस्स पयमग्ग विहिं (अभिगच्छति) अणुगच्छमाणे अभिग(जमाणे)जंते हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितजेमाणे अभितासेमाणे पिंट्टओ अणुगच्छइ।
शब्दार्थ - दीहमद्धं - दीर्घमार्ग, हक्कारेमाणे - फटकारते हुए, अभितासेमाणे - अत्यंत त्रस्त करते हुए।
भावार्थ - चोर सेनापति चिलात नगर रक्षकों द्वारा हत, मथित और पराभूत होकर सार्थवाह कन्या सुसुमा को लेकर एक भयानक जंगल में प्रविष्ट हो गया, जिसके रास्ते का कोई आर-पार नहीं था।
धन्य सार्थवाह ने जब चिलात को अपनी पुत्री को लिए हुए जंगल की ओर जाते हुए देखा तो अपने पाँचों पुत्रों के साथ कवच आदि धारण कर चिलात के पदचिह्नों को देखते हुए उसे दुत्कारता-फटकारता-पुकारता, अभितर्जित एवं अभित्रस्त करता हुआ उसके पीछे भागा।
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