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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SECRECREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEOCcccccccacace . धणकणगं सुसुमं च दारियं गहाय जाव पडिगए, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए, तुन्भे णं देवाणुप्पिया! से विपुले धणकणगे ममं सुसुमा दारिया।
भावार्थ - तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह अपने घर आया। उसने देखा कि चोर धन संपत्ति को लूट ले गए हैं एवं उसकी पुत्री को भी अपहृत कर लिया है। वह बहुमूल्य भेंट लेकर नगर गुप्तिक-आरक्षी पुरुषों के पास गया और उनको बहुमूल्य भेंट देकर निवेदन किया कि देवानुप्रियो! चोर सेनापति चिलात कुछ समय पूर्व ही यहाँ आया। मेरे घर को लूटा, स्वर्ण धन आदि ले गया और मेरी कन्या को भी ले गया।
देवानुप्रियो! मैं और मेरे पारिवारिकजन चाहते हैं कि आप मेरी कन्या सुंसुमा की खोज के लिए निकलें। चोरों द्वारा चुराए गए धन और लड़की को वापस लाएँ। देवानुप्रियो! चोरों से प्राप्त सारा धन आपका होगा। मैं केवल पुत्री सुसुमा को ही लूंगा। .
चिलात का पराभव
(२७) तए णं ते णगरगुत्तिया धण्णस्स एयमढे पडिसुणेति २ ता सण्णद्ध जाव गहिया उहपहरणा महया २ उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाओ णिग्गच्छंति २ ता जेणेव चिलाए चोरे तेणेव उवागच्छंति २ ता चिलाएणं चोरसेणावइणा सद्धि संपलग्गा यावि होत्था। __भावार्थ - नगर रक्षकों ने धन्य सार्थवाह का यह प्रस्ताव स्वीकार किया। वे कवच धारण कर तस्कर का पीछा करने को तैयार हुए यावत् शस्त्रास्त्र लिए। जोर-जोर से सिंहनाद किया यावत् मानो उछालें मारते हुए समुद्र की ध्वनि हो।
- वे राजगृह नगर से निकले। जिस ओर चिलात चोर भाग कर गया था, वहाँ पहुँचे और उस चोर सेनापति के साथ लड़ने लगे।
(२८) तए णं ते णगरगुतिया चिलायं चोरसेणावई हयमहिय जाव पडिसेहेंति। तए
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