SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ***************eed ************¤¤¶¶¶ णं ते आसुरुत्ता ५ जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता बहूहिं खिजाहि य जाव एयमट्ठ णिवेदेंति । २७६ भावार्थ तब उन बहुत से बच्चे-बच्चियों ने पूर्ववत् रोते हुए अपने माता-पिता से शिकायत की। उनके माता-पिता एकाएक क्रोध, रोष एवं कोप से प्रचण्ड हो गए। वे तमतमाते हुए धन्य सार्थवाह के घर पहुँचे । उसको पूर्ववत् बड़े ही खेद पूर्ण शब्दों में यावत् दास पुत्र की शरारत बतलाई। - निष्कासित दासपुत्र का कुसंगति में पड़ना (5) तए णं से धणे २ बहूणं दारगाणं ६ अम्मापिऊणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा आसुरुते चिलायं दासचेडं उच्चावयाहिं आउसणाहिं आउसइ उद्धंसइ णिब्भच्छेड़ णिच्छोडेड़ तज्जेइ उच्चावयाहिं तालणाहिं तालेइ साओ गिहाओ णिच्छुभइ । शब्दार्थ - उद्धंसइ - कठोर शब्दों में डांटा। भावार्थ धन्य सार्थवाह उन बच्चे-बच्चियों के माता-पिता का कथन सुनकर तत्काल बहुत ही क्रुद्ध हुआ। उसने उस दास पुत्र को ऊंचे-नीचे शब्दों में, आक्रोश पूर्वक कड़े शब्दों में डांटा, धमकाया, तर्जित किया और अनेक प्रकार से ताड़ित किया तथा घर से निकाल दिया । Jain Education International - · (ह) तए णं से चिलाए दास चेडे साओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे रायगिहे णयरे सिंघाडग जाव पहेसु देव कुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाघर एसु य पाणघरएसु य सुहं सुहेणं परिवहइ । तए णं से चिलाए दास चेडे अणोहट्टिए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी (मंस०) जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था । शब्दार्थ - जूयखलएसु - जूए के अड्डों में, पाणघर सु अणोहट्टिए निरंकुश, सइरप्पयारी - स्वच्छंद विहारी । पानगृह-मदिरालयों में, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy