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________________ सुसुमा नामक अट्ठारहवां अध्ययन - धन्य सार्थवाह को उपालंभ २७५ Soccascccccccccccccccccccccccccccccccccccccccce धन्य सार्थवाह को उपालंभ तए णं ते बहवे दारगा य ६ रोयमाणा य ५ साणं साणं अम्मापिऊणं णिवेदेति। तए णं तेसिं बहूणं दारगाण य ६ अम्मापियरो जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता धण्णं सत्थवाहं बहूहिं खिजणियाहि य रुंटणाहि य उवालंभणाहि य खिज्जमाणा य रुंटमाणा य उवालंभेमाणा य धण्णस्स स० एयमठें णिवेदेति। शब्दार्थ - खिजणियाहि - खेदयुक्त वचनों द्वारा, रुंटणाहि - रुआंसे होते हुए। भावार्थ - बहुत से बालक-बालिकाएँ, बच्चे-बच्चियाँ, कुमार-कुमारिकाएं रोते हुए दुःखित होते हुए, आँसू बहाते हुए, विलाप करते हुए, अपने-अपने माता-पिता से यह कहते-शिकायत करते। ____ तब उनके माता-पिता धन्य सार्थवाह के पास आते और सार्थवाह को बड़े ही खेद जनक, दुःख युक्त शब्दों में सारी बातें बतलाते। . . .. तए णं से धण्णे सत्थवाहे चिलायं दासचेडं एयमटुं भुजो-भुजो णिवारेइ णो चेवणं चिलाए दासचेडे उवरमइ। तए णं से चिलाए दासचेडे तेसिं बहूणं दारगाण य ६ अप्पेगइयाणं खुल्लए अवहरइ जाव तालेइ। शब्दार्थ - उवरमइ - उपरत हुआ। भावार्थ - धन्य सार्थवाह ने दासपुत्र - चिलात को इस कार्य से बार-बार निवारित किया, रोका किन्तु दासपुत्र ने वह शरारत नहीं छोड़ी। इस प्रकार वह दास पुत्र उन बालक-बालिकाओं, बच्चे-बच्चियों आदि के खिलौने पूर्ववत् चुराता रहता यावत् उन्हें ताड़ित करता रहता। तए णं ते बहवे दारगा य ६ रोयमाणा य जाव अम्मापिऊणं णिवेदेति। तए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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