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________________ सुंसुमा णामं अहारसमं अज्झयणं सुंमुमा नामक अद्वारहवाँ अध्ययन (१) जइ णं भंते! समणेणं० सत्तरसमस्स (णायज्झयमस्स) अयमढे पण्णत्ते अट्ठारसमस्स के अट्टे पण्णत्ते? भावार्थ - श्री जंबू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से जिज्ञासित किया कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सतरहवें ज्ञाताध्ययन का इस रूप में विवेचन किया है तो अठारहवें अध्ययन का उन्होंने किस प्रकार प्रतिपादन किया है? (२) एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्था वण्णओ। तत्थ णं धण्णे णामं सत्थवाहे भद्दा भारिया। तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए अत्तया पंच सत्थवाहदारगा होत्था तंजहा-धणे धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए। तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया पंचण्डं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा णामं दारिया होत्था सूमाल पाणिपाया। तस्स णं धण्णस्सं सत्थवाहस्स चिलाए णामं दासचेडे होत्था अहीणपंचिंदियसरीरे मंसोवचिए बालकीलावण कुसले यावि होत्था। भावार्थ - सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! उस काल, उस समय राजगृह नामक नगर था। उसका. वर्णन यहाँ औपपातिक सूत्र के अनुसार ग्राह्य है। वहाँ धन्य नामक सार्थवाह निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था।. धन्यसार्थवाह के भद्रा की कोख से उत्पन्न धन, धनपाल, धनदेव, धनगोप तथा धन रक्षित नामक पांच लड़के थे। - उसके पांच पुत्रों के पश्चात् भद्रा से उत्पन्न सुसुमा नामक पुत्री थी। वह हाथ-पैर आदि से सर्वांग सन्दर एवं संपन्न थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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