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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न किया- भगवन्! वह द्रुपद देव ब्रह्मलोक से च्यवन कर कहाँ उत्पन्न होगा २५२ XXXX भगवान् महावीर ने फरमाया कि वह ब्रह्मलोक स्वर्ग में यावत् आयु, स्थिति एवं भवक्षय कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा यावत् वहाँ कर्मक्षय कर, वह मोक्ष प्राप्त करेगा । (२३०) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्ति बेमि । भावार्थ - हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सोलहवें ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ कहा है। जैसा मैंने उनसे श्रवण किया, वैसा तुम्हें बतला रहा हूँ । उवणय गाहाउ - सुबहुं पि तव किलेसो णियाणदोसेण दूसिओ संतो। ण सिवाय दोवईए जह किल सुकुमालियाजम्मे ॥१॥ अमणुण्णमभत्तीए पत्ते दाणं भवे अणत्था य । जह कडुयतुंबदाणं णागसिरिभवंमि दोवईए ॥ २ ॥ ॥ सोलसमं अज्झयणं समत्तं ॥ उपनय गाथाएं - अत्यधिक तपः क्लेश - घोर तप भी निदान करने से दूषित हो जाता है। जैसे द्रौपदी के रूप में जन्म लेने से पूर्व सुकुमालिका द्वारा किया गया घोर तप भी निदान के कारण कल्याणकारी सिद्ध नहीं हुआ ॥ १ ॥ दुर्भावना और श्रद्धाहीनता पूर्वकं दिया गया दान अनर्थ के लिए होता है। जैसे द्रौपदी के जीव ने नागश्री के भव में दुर्भावना पूर्वक कडुवे तूंबे का दान दिया ॥ २ ॥ Jain Education International ॥ सोलहवां अध्ययन समाप्त ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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