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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - आर्या द्रौपदी का देवलोक गमन २५१ xcccccccccccccccccccoconcocccccccccccccomaaaaarace अत्ताणं झोसित्ता जस्सट्टाए किरइ णग्गभावे जाव तमट्ठमाराहेंति २ ता अणंते जाव केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा। ___भावार्थ - इस प्रकार युधिष्ठिर आदि पांचों पांडव अनगार जिन्होंने सामायिक आदि ग्यारह अंग एवं चतुर्दश पूर्वो का अध्ययन किया, बारह वर्ष पर्यंत श्रामण्य पर्याय का पालन - किया, दो मास की संलेखना पूर्वक आत्मा को कषाय रहित करते हुए, जिस प्रयोजन से निर्ग्रन्थ भाव-श्रामण्य जीवन स्वीकार किया जाता है, उस लक्ष्य की आराधना कर उन्होंने अनंत यावत् उत्तम केवल ज्ञान, केवल दर्शन प्राप्त किया यावत् वे सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गए। आर्या द्रौपदी का देवलोक गमन (२२८)
सकता तए णं सा दोवई अजा सुव्वयाणं अजियाणं अंतिए सामाइयमाइयाइं . एक्कारस अंगाई अहिजइ २ त्ता बहूणि वासाणि सा० मासियाए संलेहणाए आलोइय पडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए उववण्णा।
भावार्थ - आर्या द्रौपदी ने आर्या सुव्रता के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्ष पर्यन्त श्रामण्य पर्याय-साधुत्व का पालन कर, एक मास की संलेखना पूर्वक, आलोचना-प्रत्यालोचन कर देह त्याग किया और ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक में उत्पन्न हुई।
(२२६) तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं दुवइ (य)स्स(वि)देवस्स दस-सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता! से णं भंते! दुवए देवे तओ जाव महाविदेहे वासे जाव अंतं काहिइ। . भावार्थ - उस ब्रह्मलोक में कतिपय देवों की दस सागरोपम की स्थिति बतलाई गई है। देव रूप में उत्पन्न द्रौपदी के जीव-द्रुपद देव की भी दस सागरोपम स्थिति बतलाई गई है। गौतम
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