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________________ [27] पृष्ठ २३७ २४० क्रं. विषय पृष्ठ | क्रं. विषय १२५. द्रौपदी कृष्ण वासुदेव को सुपुर्द २३१ / १४२.चिलात का चोरपल्ली में आश्रय१२६.शंख ध्वनि द्वारा दो वासुदेवों प्राधान्य २७६ का सम्मिलन २३३ | १४३.विजय की मृत्यु : चिलात१२७.पांडवों द्वारा अशिष्टता उत्तराधिकारी २८० १२८.वासुदेवों का कोप : पांडवों - १४४.धन्य सार्थवाह को लूटने की योजना २८२ ____ का निर्वासन १४५.धन्य सार्थवाह के घर पर धावा २८४ १२६.पाण्डु मथुरा का निर्माण २४३ १४६.धन दौलत के साथ सुंसुमा१३०.पांडवों को पुत्र-प्राप्ति . २४४ का अपहरण २८५ १३१.पांडवों की सपत्नीक प्रव्रज्या २४६ १४७.आरक्षीजनों से शिकायत २८५ १३२.पाण्डव मुनियों की भगवान् - १४८.चिलात का पराभव २८६ अरिष्टनेमि के दर्शन की अभीप्सा २४७ १४६.पुत्रों सहित धन्य सार्थवाह द्वारा पीछा २८७ १३३.गिरनार पर भगवान् अरिष्टनेमि १५०.चिलात द्वारा सुंसुमा का शिरच्छेद २८८ १५१.धन्य शोक-निमग्न का निर्वाण . २८६ १३४.पांडवों की सिद्धि गति | १५२.आहार-पानी के अभाव में प्राण - २५० त्याग का विचार १३५.आर्या द्रौपदी का देवलोकगमन, २५१ १५३.पांचों पुत्रों द्वारा क्रमशः प्राणांतआकीर्ण नामक सतरहवां अध्ययन का प्रस्ताव १३६.समुद्री यात्रा में उत्पात । १५४.पुत्र की मृत देह से क्षुधा१३७.अकस्मात् कालिंक द्वीप में - तृषा की शांति २६२ · पहुँचने का संयोग १५५.राजगृह आगमन २६३ सुंसुमा नामक अठारहवां अध्ययन पुण्डरीक नामक उन्नीसवां अध्ययन १३८.दास पुत्र का उद्दण्ड स्वभाव २७४ १५६.राजा महापद्म : दीक्षा, सिद्धि २६८ १३६.धन्य सार्थवाह को उपालंभ २७५ १५७. राजा पुंडरीक द्वारा श्रावक धर्म स्वीकार २६६ १४०.निष्कासित दासपुत्र का १५८. युवराज कंडरीक प्रव्रजित २६६ - कुसंगति में पड़ना २७६ | १५६.अनगार कंडरीक रोयाक्रांत ३०१ १४१.चोराधिपति विजय तथा उसका- १६०.राजा पुंडरीक द्वारा चिकित्सा ३०२ दुर्जेय अड्डा २७७ | १६१.कंडरीक का शैथिल्य ३०२ २५३ २५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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