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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन
गिरनार पर भ० अरिष्टनेमि का निर्वाण २४६ X¤¤¤¤¤¤¤¤¤▪▪▪▪▪▪▪✪✪*****************
गिरनार पर भगवान अरिष्टनेमि का निर्वाण
(२२४)
तणं ते जुहिट्ठिल्लवज्जा चत्तारि अणगारा मासक्खमणपारणए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेंति बीयाए एवं जहा गोयमसामी णवरं जुहिट्ठिल्लं आपुच्छंति जाव अडमाणा बहुजणसद्दं णिसामेंति एवं खलु देवाणुप्पिया! अरहा अरिट्ठणेमि उज़िंत सेलसिहरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसहिं सद्धिं कालगए जाव पहीणे ।
शब्दार्थ - उज्जित सेल सिहरे - गिरनार पर्वत के शिखर पर ।
भावार्थ
तब युधिष्ठर के अतिरिक्त शेष चारों मुनियों ने मासखमण पारणे के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर में ध्यान किया । यहाँ अवशिष्ट वृत्तांत गौतम स्वामी की तरह ग्राह्य है। यहाँ इतनी विशेष बात है कि उन मुनियों ने अनगार युधिष्ठिर से भिक्षा की अनुज्ञा प्राप्त की यावत् उन्होंने भिक्षार्थ घूमते समय बहुतजनों को यह कहते हुए सुना कि भगवान् अरिष्टनेमि एक मास के निर्जल चौविहार तप पूर्वक पांच सौ छत्तीस मुनियों के साथ गिरनार पर्वत पर कालगत होकर यावत् समस्त कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं सर्व दुःख विरहित हो गए हैं।
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(२२५)
तए णं ते जुहिट्ठिल्लवज्जा चत्तारि अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा हत्थकप्पाओ पडिणिक्खमंति २ त्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव जुहिट्ठिल्ले अणगारे तेणेव उवागच्छंत २ त्ता भत्तपाणं पच्चुवेक्खति २ त्ता गमणागमणस्स पडिक्कमति २ त्ता एसणमणेसणं आलोएंति २ ता भत्तपाणं पडिदंसेंति २ ता एवं वयासी
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शब्दार्थ - पच्चुवेक्खंति - प्रत्यवेक्षण किया (अच्छी तरह से देखा)।
भावार्थ - युधिष्ठिर के सिवाय चारों मुनियों ने बहुत से लोगों को यह कहते सुना तो वे
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