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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - पाण्डु मथुरा का निर्माण wococccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccces
भावार्थ - पाण्डु द्वारा यों कहे जाने पर कुंती देवी हाथी पर सवार हुई और जैसे पूर्व में द्वारवती नगरी पहुँचने का वर्णन आया है, वैसे ही यहाँ योजनीय है यावत् द्वारवती नगरी पहुँच कर कृष्ण वासुदेव से मिली। ____ तब कृष्ण वासुदेव बोले-भुआ! बतलाओ किस प्रयोजन से यहाँ आना हुआ? कुंती बोलीपुत्र! तुमने पांचों पांडवों को देश निकाले की आज्ञा दे दी। तुम तो समग्र दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र के स्वामी हो। बतलाओ यावत् पांडव किस दिशा-विदिशा में किस स्थान पर जाएं?
पाण्डु मथुरा का निर्माण
(२१४) ...तए णं से कण्हे वासुदेवे कोंति देवि एवं वयासी-अपूईवयणा णं पिउच्छा! उत्तमपुरिसा वासुदेवा बलदेवा चक्कवट्टी। तं गच्छंतु णं देवाणु०! पंच-पंडवा दाहिणिल्लं वेयालिं तत्थ पंडुमहुरं णिवेसंतु मम अदिट्ठसेगा भवंतु-त्तिक? कोतिं देविं सक्कारेइ सम्माणेइ जाव पडिविसज्जेइ।
शब्दार्थ - अपूईवयणा - अपूतिवचना - अपरिवर्त्यभाषी, पंडुमहुरं - पांडुमथुरा।
भावार्थ - तब कृष्ण वासुदेव ने कुंती देवी से कहा - भुआ! वासुदेव, बलदेव एवं • चक्रवर्ती जो वचन कहते हैं, उसे कभी बदला नहीं जा सकता।
देवानुप्रिये! इसलिए पांचों पांडव दक्षिणी समुद्रतट पर जाएं। वहाँ पांडु मथुरा नामक नगर बसाएं। मेरे अदृष्ट सेवक बने रहें-कभी मेरे सम्मुख न आएं। यों कहकर कुंती का सत्कार - सम्मान किया यावत् उन्हें विदा किया।
(२१५) तए णं सा कोंती देवी जाव पंडुस्स एयमढे णिवेएइ। तए णं पंडू राया पंचपंडवे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छह णं तुन्भे पुत्ता! दाहिणिल्लं वेयालिं, तत्थ णं तुम्भे पंडुमहुरं णिवेसेह। तए णं ते पंच पंडवा पंडुस्स रण्णो जाव तहत्ति पडिसुणेति २ ता सबलवाहणा हयगय० हत्थिणाउराओ पडिणिक्खमंति २ त्ता
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