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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා जेणेव दक्खिणिल्ले वेयाली तेणेव उवागच्छंति २ त्ता पंडुमहुरं णयरिं णिवेसेइ २ त्ता तत्थ णं ते विपुल भोगसमिइसमण्णागया यावि होत्था।
भावार्थ - कुंती देवी ने अपने पति राजा पांडु से यह सब कहा। राजा पांडु ने पांचों पांडवों को बुलाया और कहा-पुत्रो! तुम दक्षिणी समुद्र तट पर जाओ और पांडु मथुरा की स्थापना करो।
राजा पाण्डु का यह कथन सुनकर पाँचों पाण्डव "जैसी आपकी आज्ञा": - यह कह कर अपनी सेनाएं, वाहन, हाथी, घोड़े आदि लेकर हस्तिनापुर से रवाना हुए। चलते-चलते दक्षिणी समुद्र के तट पर पहुंचे। वहाँ पाण्डु मथुरा की स्थापना की और प्रचुर सांसारिक सुख भोगते हुए रहने लगे।
पाण्डवों को पुत्र-प्राप्ति
(२१६) तए णं सा दोवई देवी अण्णया कयाइ आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था। तए णं सा दोवई देवी णवण्हं मासाणं जाव सुरूवं दारगं पयाया सूमालं णिव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं-जम्हा णं अहं एस दारए पंचण्हं पंडवाणं पुत्ते दोवईए देवीए अत्तए तं होउ अम्हं णं इमस्स दारगस्स णामधेजं पंडुसेणे। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेजं करेइ पंडुसेणत्ति, बावत्तरि कलाओ जाव अलं भोगसमत्थे जाए जुवराया जाव विहरइ।
शब्दार्थ - आवण्णसत्ता - गर्भवती हुई।
भावार्थ - तत्पश्चात् यथा समय द्रौपदी देवी गर्भवती हुई। उसने नौ मास (साढे सात दिवस) परिपूर्ण होने पर यावत् सुंदर रूप युक्त बालक को जन्म दिया, जो सुकुमार तथा हाथी के तालु के समान सुकोमल था।
बारहवें दिन माता-पिता ने यह सोचते हुए कि यह हम पांच पांडवों का पुत्र तथा द्रौपदी का आत्मज है, इसलिए इसी के अनुरूप इसका नाम 'पांडुसेन' रखें।
ऐसा सोचकर उन्होंने उसका यह गुणानुरूप, गुण निष्पन्न नाम रखा।
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