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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र xccccccccccccccccccccccccccccccccCIEEEEEEEEEEEEE
(२११) तए णं से पंडूराया ते पंच-पंडवे एवं वयासी-दुट्टणं (तुमं) पुत्ता! कयं कण्हस्स वासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेहिं। ___भावार्थ - यह सुनकर पांडु राजा ने पांचों पाण्डवों से कहा - पुत्रो! कृष्ण वासुदेव का अप्रिय करते हुए तुमने बहुत बुरा किया।
(२१२) तए णं से पंडू राया कोंतिं देविं सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छ णं तुमं देवाणुप्पिया! बारवई कण्हस्स वासुदेवस्स णिवेएहि-एवं खलु देवाणुप्पिया! तु(मे)म्हे पंच-पंडवा णिव्विसया आणत्ता, तुमं च णं देवाणुप्पिया! दाहिणडभरहस्स सामी, तं संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! ते पंच-पंडवा कयरंदिसि (देसं) वा । विदिसि वा गच्छंतु?
शब्दार्थ - कयरं - कौनसे।
भावार्थ - तदनंतर राजा पांडु ने महारानी कुंती को बुलाकर कहा - देवानुप्रिये! तुम द्वारवती जाओ तथा कृष्ण वासुदेव से निवेदन करो-देवानुप्रिय! आपने पांचों पांडवों को देश निकाले का आदेश दे दिया है। देवानुप्रिय! आप तो समस्त दक्षिणार्द्ध भरत के स्वामी हैं। इसलिए आप आदेश करे कि पांचों पांडव किस देश में या किस दिशा-विदिशा में जाएं? किस स्थान में रहे?
(२१३) तए णं सा कोंती पंडुणा एवं वुत्ता समाणी हत्थि खंदं दुरुहइ० जहा हेट्ठा जाव संदिसंतु णं पिउच्छा! किमागमणपओयणं?
तए णं सा कोंती कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु (तुमे) पुत्ता! पंचपंडवा णिव्विसया आणत्ता तुमं च णं दाहिणभरहस्स जाव विदिसिं वा गच्छंतु?
शब्दार्थ - हेडा - पूर्ववत्।
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